जैसे-जैसे काल परिवर्तन हो रहा है वैसे ही वैसे संसार दशा और दिशा में भी परिवर्तन दिखाई दे रहा है। ज्ञान-विज्ञान के आश्चर्य जनक रूप से बढ़ते चरण और सद्ज्ञान- सदाचरण में होता ह्रास स्पष्ट दिखाई दे रहा है। इस स्थिति में भी सद्ज्ञानी- साधक अपनी सम्यक्चर्या- पथ अपनाये रहते हैं। इस का संकेत देता प्रसंग :
बात प्रारंभ हुई कि महाराज आज के विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि हम इंटरनेट के माध्यम से विश्व में कहाँ, क्या और क्यों हो रहा है, यहाँ पर बैठे-बैठे देख-समझ सुन सकते हैं। आचार्यश्री जी थोड़ी देर मौन रहे और मंद-मंद हँसते रहे फिर बोले- 'भरत और ऐरावत क्षेत्र में जो वृद्धि और ह्रास का कथन जैनागम में आया है। उसी के अनुसार आज अच्छी वस्तु का तो ह्रास हो रहा है और विषय कषायों की सामग्री का दिनोंदिन विकास हो रहा है। आज श्रुत ज्ञान का विकास तो हो रहा है, जिसे हम विज्ञान कहते हैं वही इन इंटरनेट आदि के रूप में दिखाई दे रहा है लेकिन सम्यक् श्रुत ज्ञान का विकास नहीं हो रहा है। उसमें तो ह्रास ही दिखता है।