सत्य का और आत्मसत्ता का परिचय रखने वाला साधु सदा अपने पास क्या रखे? क्या नहीं रखे? यह विचार निरन्तर ही करता रहता है। जैन समाज परम देशभक्त समाज है। औसत रूप में बौद्धिक क्षमता भी उसमें विशेष है। नैतिकता-कर्तव्य परायणता तथा जीवन की शुचिता का विचार भी प्राय: सभी जैनों में पाया जाता है। जैन व्यक्ति अपनी योग्यता का लाभ अपने भारत देश को पहुँचाने के लिए लालायित भी रहता है। इसी संदर्भ में आचार्यश्री के समक्ष प्रस्तुत एक प्रसंग उल्लेखनीय है।
प्रसंग : सागर नगर वाले डॉ. अमरनाथजी के साथ उस दिन डॉ. सुनील जैन (सीहोरा) आचार्यश्री के दर्शनार्थ आए। चर्चा चली तो पता चला कि डॉ. सुनील जैन किडनी स्पेश्यलिस्ट हैं। उनकी अस्पताल इंग्लैंड में है। अब वे विशेष अध्ययन हेतु अमेरिका जा रहे हैं। विशेषज्ञता प्राप्त करके वे भारत वापस आना चाहते हैं। वे अच्छी कमाई छोड़कर भारत क्यों आना चाहते हैं? इसका उन्होंने उत्तर दिया- 'अपनी योग्यता का लाभ मैं अपने भारत देश को देना चाहता हूँ वही मेरे लिए सबसे बड़ी कमाई होगी।' आचार्यश्री ने कहा 'बहुत अच्छा विचार है, जो आपने भारत आने का सोचा। आज भारत की मेधा (बुद्धि) का लगातार निर्यात हो रहा है। अपने देश में ऐसी-ऐसी प्रतिभाएँ हैं कि वे विश्वभर को चकित कर रही हैं, पर भारत उनकी प्रतिभा का लाभ लेने से वंचित है।'
अध्ययन की दृष्टि से विदेश जाना ठीक है, पर पढ़ाई पूरी कर वहीं बस जाना देशभक्ति नहीं है। सभी को आपकी तरह ही अपने देश का गौरव बढ़ाना चाहिए। सेवा करना चाहिए। अपनी योग्यता का लाभ देना चाहिए। अंत में आचार्यश्री ने कहा 'आप जैन समाज को गौरवान्वित कर रहे हैं। देश सेवा करने का विचार है इसलिए हमारा आशीर्वाद है।'