हर समय मनुष्य अपने ज्ञान का सदुपयोग करे तो हमेशा लाभ ही लाभ होता है। वह कैसे? जैसे बचपन में अपने ज्ञान-चतुरता से बाल विद्याधर करते थे, कैसे करते थे। पूज्य गुरुदेव के मुख से सुना उनके बचपन का यह प्रसंग है | 14 जून 2000 रविवार, भाग्योदय तीर्थ सागर शाम का समय था। हम लोग आचार्यश्री की वैय्यावृत्ति कर रहे थे। तभी जनेऊ को लेकर चर्चा चल पढ़ी। तब आचार्यश्री ने अपने बचपन की चतुरता के बारे में बताया।
दक्षिण भारत में परंपरा है कि आषाढ़ पूर्णिमा एवं भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) को सभी नया जनेऊ पहनते हैं। बूढ़ा हो या बच्चा-आबाल-वृद्ध सभी जनेऊ धारण करते हैं। उस समय सामान्यत: जनेऊ बेचने वाले से भी एक पैसे में एक जनेऊ ले लेते थे। लेकिन हम तीन जनेऊ लेते थे। क्योंकि एक पैसे के तीन ही आते थे पर लोग अपनी जरूरत के हिसाब से एक पैसा देकर एक ही लेते थे। हम देखते कोई जनेऊ लेने जा रहा है। उससे पूछ उसे एक जनेऊ दे दिया और एक पैसा ले लेते थे। ऐसा करके एक बार में 2 पैसा अपने जेब में आ जाता था।
हम लोगों ने पूछा - ऐसा कितनी बार करते थे।
आचार्यश्री जी - हँसने लगे। ज्यादा नहीं करते बस एक-दो बार ही करते थे।
हम लोगों ने कहा - यानि आप बचपन में बड़े होशियार थे। जनेऊ भी ले लिया और पैसा भी दूने आ गए।
आचार्यश्री हँस दिए। यह तो बुद्धि का खेल है। जैसी लगा लो, बस पैसा कमा लो। पर प्रचलित कीमत से ज्यादा नहीं लेना चाहिये। वैसे ही मोक्षमार्ग में विशुद्धि का खेल है। जितनी विशुद्धि बढ़ाओगे, उतना ही हमारा मोक्षमार्ग प्रशस्त होगा और मोह का प्रभाव कम होगा।
ज्ञानवान हर क्षण करे, अपना ज्ञान प्रयोग |
बह्म लाभ के साथ हो, आत्मिक लाभ सुयोग ||
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव