स्वाध्याय 2 - प्रमाण/नय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- नयों में मत उलझो, नय तो मार्ग है मार्ग में सुख की अनुभूति नहीं।
- नय मार्ग ही है, अब चाहे निश्चय हो या व्यवहार, इसलिए आचार्य कुन्दकुन्द महाराज ने कहा है कि नय पक्षपात से अतिक्रान्त हुए बिना साधक को समयसार का आनंद आ ही नहीं सकता।
- प्रमाण और नय में उतना ही अन्तर है जितना कि दृष्टि और दृष्टिकोण में।
- अपनी दृष्टि तक सीमित रहते हुए भी दूसरों की दृष्टि पर प्रहार नहीं करना नय है।
- जिस प्रकार दो नयनों के माध्यम से मार्ग का ज्ञान होता है उसी प्रकार निश्चय एवं व्यवहार इन दोनों नयों के माध्यम से मोक्षमार्ग का ज्ञान होता है।
- जैसे दोनों कूल परस्पर प्रतिकूल होकर भी नदी के लिए अनुकूल है ठीक उसी तरह व्यवहार नय और निश्चय नय परस्पर एक दूसरे के प्रतिकूल होकर भी आत्मा के प्रमाणरूप ज्ञान के लिए अनुकूल है।
- व्यवहार और परमार्थ दोनों को जानों किन्तु अपेक्षा बनाकर परमार्थ को मुख्य और व्यवहार को गौण जानों।
- कैमरे के माध्यम से बाहरी शक्ल पकड़ में आती है और एक्सरे के माध्यम से भीतरी, क्योंकि अन्तरंग को पकड़ने की शक्ति मात्र एक्सरे में है कैमरे में नहीं। अत: आप एक्सरे के शौकीन बनें कैमरे के नहीं, कैमरा व्यवहार का प्रतीक है और एक्सरे निश्चय का।
- मन की चंचलता से होने वाली झगड़ालू प्रवृत्ति को दूर करने के लिये ही आगम में नयों की व्यवस्था है।
- निश्चय, व्यवहार के बिना नहीं होता और जो व्यवहार होता है वह निश्चय के लिए होता है।
- वह निर्णय सही नहीं है जो व्यवहार की ओर कदम नहीं बढ़ाता और वह व्यवहार भी सही नहीं माना जाता जो निश्चय तक नहीं पहुँच पाता, वो मात्र व्यवहाराभास है।
- निश्चय में यदि दौड़ लगाना चाहते हो तो बदलाहट अनिवार्य है रुकावट नहीं।
- जिस साध्य को सिद्ध करना है उसका लक्ष्य बनाना निर्णय है और जिसके माध्यम से साध्य सिद्ध होता है वह व्यवहार है तथा साध्य की उपलब्धि होना निश्चय है। इस तरह पहले निर्णय होता है फिर व्यवहार और अन्त में निश्चय। निर्णय को ही निश्चय मानना हमारी आध्यात्मिक भूल है।
- निश्चय और व्यवहार इन दोनों नयों का प्रयोग साधना में उतरे हुए व्यक्ति के लिये ही है, साधना का फल मिलने के बाद भी यदि कोई साधक नयों का प्रयोग करना चाहे तो यह ठीक नहीं। जैसे निचली कक्षा पास किये बगैर यदि विद्यार्थी ऊपर की कक्षा में बैठना चाहता है तो ठीक नहीं और पास होने के बाद भी उसी कक्षा में बैठना चाहे यह भी ठीक नहीं।
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