संस्तुति 4 - श्रद्धा/समर्पण विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- श्रद्धा, बुद्धि से परे है लेकिन उसकी विरोधनी नहीं।
- श्रद्धा से अन्धकार में भी जो प्रतीत हो सकता है वह प्रकाश में संभव नहीं, प्रकाश में सुविधा मिल सकती है पर विश्वास नहीं।
- श्रद्धा, आस्था और अनुराग से अभिषिक्त मन में ही भक्ति का जन्म होता है।
- श्रद्धा का सेतु एक ऐसा सेतु है जो श्रद्धेय और श्रद्धालु की दूरी को पाट देता है।
- मांगने से नहीं किन्तु अधिकार श्रद्धा से मिलते हैं।
- श्रद्धेय की सम्पदा पर श्रद्धालु का अधिकार सहज ही होता है। विश्वास दिलाया जा सकता है पर रास्ता तो स्वयं को तय करना होगा।
- आस्था मस्तिष्क में नहीं हृदय में जमती है अत: हमारी आस्था का केन्द्र ज्ञान सम्पन्न मस्तिष्क नहीं बल्कि भावना सम्पन्न हृदय होता है।
- निज आत्मा और परमात्मा पर आस्था-विश्वास की बात ही निराली है, उस समय की भावदशा के प्रभाव से अनादिकालीन मिथ्यादृष्टि सत्तर कोड़ाकोड़ी-सागर स्थिति वाले मिथ्यात्व को अन्त: कोड़ाकोड़ी कर देता है।