रत्नत्रय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- रत्नत्रय पर भरोसा आत्मा का रहे, मन का नहीं मन तो तस्कर है।
- आज भी पंचमकाल में, भरतक्षेत्र में रत्नत्रयधारी भावलिंगी मुनि हैं। ऐसा पूर्ण श्रद्धान रखना चाहिए।
- रत्नत्रय तो वही है भले आज हीन संहनन हो।
- बाजार में सोना-चाँदी रत्न तो मिल सकते हैं, लेकिन सम्यक दर्शन आदि रत्न नहीं मिल सकते। रत्नत्रय तो आत्मा को छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता।
- प्रभु कृपा, गुरु कृपा से ही यह महान् रत्नत्रय की निधि प्राप्त होती है।
- संसारी प्राणी रत्नत्रय की चाह न करके पाषाण खण्ड रूपी रत्नों की चाह करता है, अर्थात् चिंतामणि रत्न को छोड़कर काँच के टुकड़ों को प्राप्त करना चाहता है।
- रत्नत्रय को धारण किए बिना निश्चय मोक्षमार्ग प्राप्त नही होता।
- रत्नत्रय की आराधना हमेशा बनी रहे, सभी साधक यही भावना रखते हैं, लेकिन जब शरीर इसके लिए साथ नहीं देता तो वह उस रत्नत्रय धर्म के लिए शरीर का साथ छोड़ देता है।
- आचार्य श्री ज्ञानसागरजी की काया कृश् थी पर रुनत्रय का मावा सफेद ही था।
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