परीषह विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- नदी में ही नाव की शोभा है, ठीक वैसे ही परीषहों से ही साधु की शोभा है।
- स्वाभिमान रखने से याचना परीषह सहन हो जाता है।
- परीषहजय के बिना अनुप्रेक्षाओं का कोई महत्व नहीं होता।
- मोक्षमार्ग में दु:ख को सहन करने से कर्मों की निर्जरा होती है।
- परीषहीं का सहन, मार्ग से स्खलन न हो और कर्म निर्जरा होती रहे इसलिए किया जाता है। उपसर्ग, परीषहों में जीने वाले को स्वाध्याय की क्या आवश्यकता उनकी हर क्षण कर्म की निर्जरा हो रही है।
- संसारी प्राणी आराम चाहता है लेकिन मोक्षमार्ग में सबसे पहले परीषह सहन करना पड़ते हैं,ये परीषह मोक्षमार्गी को संवर मार्ग में बनाये रखते हैं।
- अनुकूल-प्रतिकूल वातावरण में समता बनाये रखना ही तो दृढ़ श्रद्धान माना जाता है।
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