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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मोक्षमार्ग

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    मोक्षमार्ग विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. मोक्षमार्ग में कोई बड़ा फावड़ा नहीं चलाना पड़ता मात्र दृष्टि को बदलना होता है।
    2. मोक्षमार्ग में अभिमान छोड़कर आत्मध्यान में लगना चाहिए, वह मैनासुंदरी थी जो कहती थी मैं ना सुंदरी हूँ।
    3. साधु सदा सुखी रहते हैं क्योंकि उन्हें यह विश्वास रहता है कि मैं जिस मार्ग पर चल रहा हूँ इसके माध्यम से धीरे-धीरे कर्म बंध से छूट रहा हूँ।
    4. दुर्बल मन वाले को मोक्षमार्ग में ही संहनन याद आता है, मोह मार्ग में नहीं और मोक्षमार्ग में अभी कम उम्र है ऐसा सोचता है, विषय कषाय में उम्र नहीं देखता।
    5. सुख चाहने वाले को विद्या प्राप्त नहीं होती और विद्या प्राप्त करने वाले को सुख प्राप्त नहीं होता, ऐसा ही मोक्षमार्ग में है।
    6. मोक्षमार्ग में विषयों से ऊपर उठना प्रथम वर्ष की परीक्षा है और कषायों से ऊपर उठना फाइनल परीक्षा है।
    7. शरीर और शरीर से सम्बन्धित लोगों से नाता तोड़ने का नाम ही मोक्षमार्ग है।
    8. मोक्षमार्ग टेड़ा नहीं है बिल्कुल सीधा है, ढाई द्वीप में कहीं से भी देखो बिल्कुल सीधा है।
    9. मोक्षमार्ग में मोह, मद व मत्सर के लिए कोई स्थान नहीं है।
    10. मोक्षमार्ग की यात्रा में ज्ञान हमारा दर्शक है, लजा/मर्यादा मित्र के समान है, तप-संबल (नास्ता) है, चारित्र पालकी है। २८ मूलगुण वीतरागता रक्षक हैं, समता शीतलता से युक्त हवा है और छाया दया भावना है, स्वर्ग पड़ाव के समान है, बिना बाधा के, बिना दुर्घटना के यह मार्ग सीधा मोक्ष पहुँचता है। देवों का काम यही है कि सही मार्ग पर चलने वालों की व्यवस्था करते जाना।
    11. आज इस मार्ग में जुगनू का प्रकाश है, तूफान, हवा-पानी और चारों ओर दलदल है, फिर भी चलना तो है ही। भगवान को याद करते चलो कि हे भगवान! ऐसे रास्ते को आप कैसे पार कर गये। लघुता को प्रकट करते हुए और दूसरों को भी मार्ग प्रशस्त करते हुए चले गये, ऐसी भगवान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए चलो।
    12. यदि आप ज्ञेय से नहीं चिपकते हो तो मोक्षमार्ग में आनंद ही आनंद है।
    13. मोक्षमार्ग में अवधिज्ञान एवं मन:पर्ययज्ञान अनिवार्य नहीं है इनके बिना भी मुक्ति मिल जाती है।
    14. यह श्रमणचर्या तब से है जब से विश्व विद्यमान है।
    15. इस मयूर पिच्छिकाधारी श्रमण जहाँ भी जाते हैं, वह भूमि पवित्र हो जाती है।
    16. साधुओं का रुकना और विहार होना दोनों श्रावकों की वजह से ही होता है।
    17. मुनिमुद्रा के द्वारा कभी किसी को क्षति नहीं पहुँचती।
    18. रत्नकरण्डक श्रावकाचार ग्रन्थ में मोक्षमार्ग को ही धर्म कहा गया है।
    19. भटककर वापस आने की अपेक्षा चलने से पूर्व ही रास्ते की पहचान कर लो तो अच्छा होगा।
    20. मोक्षमार्ग में सम्यक दृष्टि कभी थकता नहीं बल्कि और मजबूती लाता है।
    21. जब पाप की क्रिया से बच रहे हैं तब उस समय सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक्र चारित्र भी काम कर रहे हैं, ऐसा समझना चाहिए।
    22. मोक्षमार्ग में संसार (स्वर्गादि) का सुख तो नास्ता की तरह है, भोजन तो मोक्ष सुख ही है। नास्ता में ही संतुष्ट नहीं होना चाहिए, क्योंकि जिस कार्य के लिए आये हो थोड़े से प्रलोभन के कारण उसे भूलना नहीं चाहिए।
    23. सम्यक दर्शन रूपी टिकिट को अच्छे से सम्भालकर रखना चाहिए, क्योंकि मोक्ष का रास्ता लम्बा है।
    24. मोक्षमार्ग में मन के द्वारा पंचेन्द्रिय विषय न आवे यह महत्वपूर्ण साधना मानी जाती है। मोक्षमार्ग में पंचेन्द्रियों का व्यापार रुकना चाहिए।
    25. मोक्षमार्ग में कभी-कभी मन भी साथ नहीं देता दूसरे की तो बात ही क्या ?
    26. समयसार मोक्षमार्ग में चलने वाले व्यक्ति को पहली किताब है। पहाड़ चढ़ते समय भार कम करना पड़ता है वैसे ही मोक्षमार्ग में (परिग्रह रूपी) भार उतारकर ही चला जा सकता है।
    27. जो हमारे रास्ते में बाधक है वह परिग्रह ही है ऐसा मानकर चलो और रास्ते में हल्के/फुल्के होकर चलो तभी आनंद आवेगा।
    28. मोक्षमार्ग का प्रतिपादन शब्दों के माध्यम से नहीं हो सकता बल्कि आस्था के माध्यम से देखना चाहो तो दिख सकता है।

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