माया, मायाचारी विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- मायाचारी करने वालों को दु:ख ही दु:ख मिलता है, ऐसा जानकर मायाचारी का पूर्णत: त्याग कर देना चाहिए।
- मायाचारी अनुमान के माध्यम से प्रमाणित हो जाती है, इसलिए ये मत समझो कि मेरी मायाचारी कोई नहीं जान सकता। जैसे चन्द्रमा को पूर्ण निगलते ही ज्ञात हो जाता है कि राहु आ गया है, राहु छिप नहीं सकता।
- मायाचारी प्रत्यक्ष देखने में नहीं आती, अन्य कषाय, क्रोध, मानादि तो देखने में भी आ जाते हैं।
- तिर्यञ्चगति के जीव तीन लोक में सभी जगह रहते हैं, यह माया की ही महिमा है।
- व्रती माया, मिथ्या और निदान इन तीनों शल्यों से रहित होता है।
- माया की पोशाक पहनकर ही झूठ, चोरी की जाती है।
- मायाचारी करने से यश समाप्त हो जाता है, जैसे मारीचि मायाचारी से मृग बनकर आया तो उसका यश समाप्त हो गया।
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