क्रोध विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- व्यर्थ कार्यों में शक्ति खर्च करने से क्रोध आता है। ज्यादा बोलने से भी गुस्सा आता है, आज्ञा का उल्लंघन हो जाने पर भी गुस्सा आता है, प्रतिकूलता में भी गुस्सा आता है, इन निमित्तों से हमें बचना चाहिए।
- धीर-वीर की परीक्षा यही है कि वे क्रोध न लायें/करें।
- क्रोध के कारण अपने कार्य की हानि सभी कर जाते हैं, क्रोध करना कषाय का, असंयम का द्योतक है।
- क्रोध करने का अर्थ है, दूसरे की गलती की सजा अपने को देना।
- कन्नड़ में कहा है कि- "शिटेन कई दगे बुद्धीयन कुडवारदू" अर्थात् क्रोध के हाथ में अपनी बुद्धि नहीं देनी चाहिए।
- क्रोध करते समय अपने आप को क्रोधी न मानना बहुत बड़ी भूल है।
- क्रोध कायरता का प्रतीक है, क्रोध न करना ही वीरत्व है।