ख्याति विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- धर्म की प्रभावना हो यह भावना ठीक है, लेकिन अपनी प्रभावना की कामना करना ख्याति लाभ में आ जाता है और ख्याति, लाभ व पूजा के कारण व्रत नष्ट हो जाते हैं।
- मोक्षमार्ग में ख्याति को अपनाना यानि व्रतों को खा-पीकर साफ करना है।
- ख्याति का प्राकृत शब्द 'खाई' बनता है। खाई का अर्थ होता है, गड्डा अर्थात् ख्याति की ओर जाने का अर्थ है, गड्डे में गिर जाना।
- अज्ञान के कारण ही व्यक्ति मोक्षमार्ग पर चलते हुए भी ख्याति की कामना कर जाता है। अज्ञान ऐसा अंधकार है, जो कई लोगों को गड्डे में गिरा देता है।
- भोग, आकांक्षा, ख्याति व लाभ की कामना रखकर व्रत, पूजा आदि करने वाला रत्न बेचकर काँच खरीद रहा है, घी बेचकर छाछ खरीद रहा है।
- जैसे बच्चा सौ रुपये देकर दो चॉकलेट चाहता है, वैसे ही मोक्षमार्ग पर आकर अज्ञानी यश, ख्याति की चाह रखता है, जो कि निरर्थक है।
- भक्ति से जो भुति मिलती है, उसमें निरीहता रखो, पुण्य बंध के फल में निरीहता रखो।
- ख्याति, लाभ व प्रशंसा आदि मन के परिग्रह हैं, इनसे हमेशा मोक्षमार्गी को बचना चाहिए।
- ख्याति, लाभ, पूजा के लिए ज्ञान का उपयोग करना ज्ञान का दुरुपयोग करना है।
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