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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • कषाय

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    कषाय  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. कषाय और इन्द्रियों को वश में करो, कायक्लेश तप के द्वारा शरीर का शोषण करना चाहिए।
    2. बहुत समय तक घोर से घोर तप मत करो, लेकिन कषाय तो मत करो।
    3. दुनियाँ की चीजों में स्पर्धा न करके कषाय को जीतने की स्पर्धा करो, फिर मुक्ति तुमसे दूर नहीं।
    4. अपनी शक्ति का उपयोग कषाय को जीतने में ही करना चाहिए।
    5. ज्ञानी, विवेकी वही है, जो कषाय का शमन करता है।
    6. कषाय करने से कषाय की फौज (सेना) और बढ़ती जाती है। जैसे युद्ध में रावण का एक सिर कटता है तो दस सिर और पैदा हो जाते हैं।
    7. कषायों का शमन करना बच्चों का खेल नहीं बन सकता, इसलिए इस मार्ग पर चलना चाहते हो तो कषाय को जीतो, परिग्रह का त्याग करो।
    8. कषाय की प्रचुरता के कारण ही यह जीव निगोद से नहीं निकल पाता। ईष्र्या, स्पर्धा आदि कषाय के ही अंश हैं, ये मान कषाय को ठेस पहुँचाते हैं।
    9. कषायों का आवेग आत्मा को अंधा बना देता है।
    10. क्रोधादि चारों कषायों का एक साथ उदय नहीं हो सकता, वरन् संसार में हंगामा मच जायेगा।
    11. कषाय आपके पास हैं तो आप कसाई हैं, फिर कोई आपसे कसाई कहता है तो आप आगबबूला क्यों होते हो ?
    12. क्रोध, मान, माया, लोभ हमारा स्वभाव नहीं है, जिन्हें ऐसा श्रद्धान हो जाता है, इनकी ओर अपना उपयोग नहीं ले जाता।
    13. कषाय से बचना चाहते हो तो सबसे अच्छा सूत्र है, दूसरे के बारे में मत सोचो, अपने बारे में चिंतन करो, दूसरे के बारे में सोचो तो उसकी अच्छाई के बारे में सोचो।
    14. कषाय के वशीभूत होकर धर्मात्मा को नीचा दिखाने का अर्थ है, अपने धर्म को ही अपमानित करना ।
    15. हमारी कषाय शरीरादि नो कर्म को देखकर उद्वेलित हो जाती है। अंदर कर्मों का बारूद भरा है जो नो कर्म रूपी आग का सम्पर्क पाकर फूट पड़ता है।
    16. कषाय का सहारा लेने वाला ज्ञान खतरनाक है, वह संसार का कारण बनता है।
    17. अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय में आते ही सम्यकदर्शन और सम्यकचारित्र दोनों नष्ट हो जाते हैं।
    18. मद, अभिमान मान कषाय की उदीरणा के बिना नहीं हो सकता।
    19. हम कषायों के माध्यम से ऊर्जा को विपरीत दिशा में ले जाते हैं तो हमारा विकास पतन को प्राप्त हो जाता है।
    20. कषायों का वमन (त्याग) करते ही मन शांत हो जाता है, मन में हल्कापन आ जाता है।
    21. जो कषाय वश मोक्षमार्ग को दूषित करता है, कषाय की प्रचुरता रखता है, वह निगोद में जाता है।
    22. कषाय करने वाला स्वयं दु:खित है, क्योंकि प्रतिकार के भाव हुए हैं, लेकिन जिसे असाता का उदय है वह समता से सह लेता है तो वह दु:खी नहीं है।
    23. कषाय करने वाला उस मुर्गे के समान है, जो दर्पण में अपने बिम्ब से ही लड़ता है।
    24. कषाय रखना फटाके की दुकान के समान है। आग्रह रूपी अग्नि का संयोग मिलते ही दुकान तक जलकर समाप्त हो जाती है।
    25. प्रतिकार में भाव करना कषाय की मौजूदगी बताते हैं।
    26. यदि कषायें शांत हैं तो अपने घर में आ सकते हो वरन् नहीं। कषाय स्वयं अपनी आत्मा को कसती है।
    27. कषाय को शमन करने की स्पर्धा करो। जिस स्पर्धा से कषाय उत्पन्न हो, ऐसी स्पर्धा छोड़ दो |

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    Gurudev ka Sahitya padne ka bhav raha hai phir bhi aapne kis ke Madhyam se Hame पढ़ने का मौका दिया है हम आपके आभारी हैं आपको चलता-फिरता  शास्त्र हमारे हाथ में है अच्छा लगता है।

     

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