कार्य विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- धैर्य से कार्य करने से कार्य निर्विघ्न सानंद सम्पन्न हो जाते हैं।
- कार्य-कर्ताओं को इधर-उधर देखे बिना नीचे निगाह किए हुए कार्य करते रहना चाहिए।
- अंधे को जब संगीत में निष्णात देखते हैं तो मालूम होता है कि लगन से ही कार्य सिद्धि होती है।
- समयोचित कार्य करना ही कार्य कुशलता मानी जाती है और आगामी भव सम्बन्धी जो पुरुषार्थ प्रबन्ध कर रहा है, वह कार्य कुशल माना जाता है। जैसे जो किसान बीज को अगली फसल के लिए रखता है, वही कुशल किसान माना जाता है।
- करने योग्य ही कार्य करो, न करने योग्य कार्य मत करो। ज्ञानी ऐसी युक्ति से कार्य करता है कि जिससे कर्म निर्जरा अधिक और कर्मबंध कम हो।