ईर्ष्या विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- जहाँ पर ईर्ष्या है, वहाँ पर मान अवश्य रहता है, भाव हिंसा भी होती है, वहाँ असत्य भी रहता है और मूर्च्छा भी।
- ईर्ष्या, स्पर्धा आदि कषाय के ही अंश हैं, क्योंकि इनसे मान को धक्का लगता है।
ईर्ष्या विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
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