द्रष्टि विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- स्वरूप की ओर द्रष्टि रखने से जीव अनंत सुख का भोता हो जाता है।
- जिस वस्तु से वीतरागता प्राप्त हो सकती है, उसी वस्तु से रागी व्यक्ति राग प्राप्त कर लेता है, यह द्रष्टि का ही परिणाम है।
- सम्यक् रूप से दृष्टि रखने से ही उद्धार होगा।
- निश्चय दृष्टि आते ही व्यवहार के सारे भूत उतर जाते हैं।
- सम्यकद्रष्टि को अपनी पहचान में कुशलता रखनी चाहिए।
- स्व की पहचान के बिना श्रद्धान मजबूत नहीं बनता एवं सही दिशा में कदम भी नहीं उठते।
- मोक्षमार्ग में जब स्वयं अपने दोषों का गुरु के सामने बखान करें तभी योग्य प्रायश्चित मिल सकता है।
- बाह्य शरीर को जड़ मान लो तो क्रोध व राग-द्वेष नहीं होगा। यह ज्ञाता-दूष्टापन बहुत महत्वपूर्ण है।
- हमारी दृष्टि के कारण ही वीतरागता में भी राग दिखता है एवं राग में भी वीतरागता दिखती है।
- श्रावक मुनि के पीछे चलता है और उसकी दृष्टि हमेशा मुनिव्रत की ओर ही लगी रहती है।
- जितने पदार्थ के गुण हैं, उनमें पक्षपात न करना, मोहित न होना अमूढ़दृष्टित्व अंग है।
- विशेष रूप से तत्व चिन्तन होने पर विषय-सुखों से दृष्टि हट जाती है।
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