धन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- अर्थ के लिए जीवन नहीं बल्कि जीवन चलाने के लिए कुछ अर्थ रख लें तो ठीक है।
- संग्रह का विरोध नहीं, परिग्रह का विरोध है। संग्रह इसलिए किया जाता है कि समय आने पर उसे बांट दिया जावे और चमड़ी जावे पर दमड़ी ना जाये इस वृत्ति का नाम है परिग्रह।
- ज्यादा अर्थ आने से भी परमार्थ छूट जाता है इसमें ब्रेक लगाना भी आना चाहिए नहीं तो गड्डे में चले जाओगे।
- आपके जीवन में धन है तो ठीक है पर यदि आप का धन कमाने में जीवन चला जायेगा तो क्या होगा ?
- नाव जब तक पानी में तैरती है तब तक ठीक है और यदि नाव में पानी आ जाता है तो नाव में हाहाकार मच जाता है।
- यह धन का संयोग तो संयोग है, पर हाथ की रेखायें मैल नहीं होती उन रेखाओं में पुरुषार्थ लिखा होता है, भाग्य बनाया जाता है।
- वह धन पैसा किस काम का जो गले का फंदा बन जावे।
- धन को उतना ही ग्रहण करना चाहिए जितना उपादेय हो, भोजन जैसा ही।
- धन के त्याग से धर्म प्रभावना होती है, धन से नहीं।
- धन से सम्बन्ध उतना ही रखो, जैसे दीपक जलाते वक्त माचिस से तीली निकालते हैं, अंगुली, अंगूठा उससे दूर रखते हैं और ज्यादा गड़बड़ करे तो तीली को फेंक देते हैं। ठीक उसी प्रकार धन रखो लेकिन आँख बंद होने से पहले फेंक दो। छोड़ जाओगे तिजोरी में तो रखवाली करने आना पडेगा, कुंडलीमार बनकर।
- इतना ही अर्थ (धन) अपने पास रखो जिससे परमार्थ का दरवाजा बंद न हो सके।
- भगवान् ने जिस ओर से मुख फेर लिया आपने उस ओर मुख कर लिया। आप जोड़ने में लगे हैं लेकिन अपार धन राशि केवल पूर्व सात्विक साधना से प्राप्त होती है। पूर्व में जो महाव्रती बनते हैं वे ही अगले भव में चक्रवर्ती आदि पद प्राप्त करते हैं। आप अहिंसा का आधार लेकर साधना करो, धन-लक्ष्मी तो आपके पीछे-पीछे आवेगी।
- यदि मल संचय रोग का कारण बनता है तो धन संचय दोष का कारण बनता है।
- युक्तिपूर्वक तन, मन एवं धन का उपयोग किया जाता है वरन् पाप का बंध होता है। धन विषयों में लगाओगे तो पाप बंध होगा और पाप से कमाई सम्पदा भी नष्ट हो जाती है।
- आप लोग पुण्य के फलों में रचो-पचो नहीं, इसे धर्म में लगा देते हैं तो अगले भव में अच्छे अच्छे पद प्राप्त होते हैं।
- अपना द्रव्य तो शाश्वत है, इस नश्वर द्रव्य (धन) के बारे में मत सोचो इसे प्रभु के चरणों में चढ़ा दो।
- इस प्राण (जान) से रहित सम्पदा की रक्षा में आपके प्राण भी जा सकते हैं।
- धनवान बनने से पहले ये सोचिये कि धन क्या है? धन पाप है तो क्या आप पापी होना चाहोगे ?
- धन कमाने से पहले उसके सदुपयोग की बात सोच लो।
- आपका धन बैंक में है, वह परिग्रह है, वहाँ से पाप की नाली आप तक हर क्षण आती रहती है।
- शुद्ध धन (सात्विक धन) के द्वारा सजनों की भी संपत्तियाँ विशेष नहीं बढ़ती हैं, जैसे नदियाँ शुद्ध जल से कभी भी परिपूर्ण नहीं होती।
- "वैधानिक तो, पहले बनो फिर धनिक बनो"।
- धन चाहते हो तो आशा अवश्य आवेगी, फिर उससे जलोगे ही।
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव