देश विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- भारत के अंदर भले महाभारत हो, लेकिन बाहर भारत एक हो। भारत के पास सभी अंग हैं लेकिन हृदय नहीं है। मैं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि हे भगवान्! इन हृदय शून्य भारतवासियों को हृदय दे दो।
- मांस निर्यात रुक जावेगा तो भारत का इतिहास बन जावेगा।
- मांस निर्यात, स्वतंत्रता के नाम पर महान् अभिशाप है, कलंक है।
- आदमियों का नाम भारत देश नहीं है, बल्कि संस्कृति का नाम भारत देश है।
- गाँधीजी ने कहा था यह आंदोलन विश्व की स्वतंत्रता के लिए है।
- महान् व्यक्तियों का उद्देश्य विश्व के लिए होता है, संकीर्ण नहीं होता।
- भारत कभी खोटा काम करके उन्नत नहीं हो सकता, क्योंकि ऐसे कार्यों में साधु, संतों का आशीर्वाद नहीं मिलेगा। सत्य का समर्थन नहीं करना यानि असत्य का समर्थन करना है।
- मनुष्य तो जियें पर पशु-पक्षियों को भी जीने दें, यही लोकतंत्र है।
- देश को धन, प्रासाद से नहीं बल्कि अहिंसा से समृद्ध बनाइए।
- विदेश में विदेह की बात नहीं मिलती। सूख-सूख कर सोंठ जैसे बन जाओगे तो भी वहाँ सुख नहीं मिलता।
- नोट से आप वोट नहीं मांगिये बल्कि अहिंसा की बात करिये, पशुओं में संरक्षण की बात करिये। डिब्बे का दूध देशवासियों की बुद्धि को भ्रष्ट करने वाला है।
- चेतन धन (पशुधन) का बेचना जिस देश में होगा उस देश का कभी भी विकास नहीं हो सकता ।
- जो मनु के, भगवान् के कहे अनुसार चलता है वही मनुष्य है।
- विदेशी संस्कार नंबर से चलते हैं, देशी भारतीय संस्कार नाम से चलते हैं।
- भारत को स्वतंत्रता मिली नहीं है बल्कि मान ली गयी है।
- प्रतिभा रत भारत चाहिए दूसरा भारत, महाभारत नहीं चाहिए।
- उन्नत भारत के लिए उन्नत भावना को संस्कारित करने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय पक्ष को लेकर कार्य करना चाहिए पक्ष/विपक्ष को छोड़कर। स्वतंत्रता का अर्थ अपना तंत्र होता है स्वच्छदता नहीं।
- योग्यता के बिना स्वतंत्रता लाभप्रद नहीं हो सकती।
- मोबाइल, फोन के साथ देशावकाशिक व्रत पल ही नहीं सकता।