चारित्र विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- आचारांग की शरण लेने से ही मुक्ति मिलती है, चारित्र का वृक्ष २८ मूलगुण पर आधारित है।
- चारित्र की शुद्धि के लिए मूलाचार ग्रन्थ बार-बार पढ़ना चाहिए।
- कषाय चारित्र मोहनीय कर्म के बंध का कारण है।
- स्वाध्याय करना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उसे चारित्र में धारण करना महत्वपूर्ण है।
- मुक्ति को चाहने वाले यत्नपूर्वक समितियों का पालन करते हैं। यदि समितियों का सही पालन नहीं होगा तो हिंसा से नहीं बच सकते।
- लोग पथ से तो चलते हैं पर ईर्यपथ से नहीं चलते लेकिन चारित्रवान् हमेशा ईर्यपथ से ही चलते हैं।
- चारित्र के बिना सद्गति सम्भव नहीं है।
- देवायु को छोड़कर यदि अन्य किसी आयु का बंध हो गया है तो फिर चारित्र ग्रहण करने के भाव नहीं होते।