भाव विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- पाप का बंध भावों पर आधारित है, मात्र सुख का अनुभव करने से पाप का बंध नहीं होता।
- सर्वार्थसिद्धि स्वर्ग में सबसे ज्यादा सुख का अनुभव होता है इसलिए सबसे ज्यादा उन्हें पाप का बंध होना चाहिए, जबकि ऐसा नहीं है, क्योंकि उनमें पाप के भाव ज्यादा नहीं होते। जिसे भावभासन होता है, उसे कुछ बोलने की आवश्यकता नहीं।
- हमारे ही घट में, भावों में दोनों रहते हैं, राम और रावण, जो चाहो प्राप्त कर लो। सत्युग कलयुग हमारे भावों की ही देन है।
- भाव मन भागता है और द्रव्य मन वहीं स्थिर रहता है। जैसे बल्ब वहीं रहता है, उसका प्रकाश इधर-उधर फैलता है।
- संवेग, निर्वेग भाव के साथ जो दीक्षित होते हैं, वह बिना (शाब्दिक) ज्ञान के भी बहुत आगे बढ़ जाते हैं।
- दीर्घ संहनन की अपेक्षा हीन संहनन के साथ भी असंख्यातगुणी कर्म की निर्जरा होती है, इसलिए हमें हमेशा अपने भावों को उज्ज्वल बनाये रखना चाहिए। भावलिंग का प्रदर्शन नहीं होता, भावलिंग का तो दर्शन होता है।
- भावों के द्वारा मोह की पर्त को अनपढ़ भी जल्दी हटा लेता है, अंजनचोर की भाँति "आणमताणम कछु न जाणम सेठ वचन परमाण" |
- भावों की पहचान करना धर्म क्षेत्र में बहुत अनिवार्य है।
- आँखों से आँसू भावों से ही आते हैं, किराये से नहीं।
- भाव कर्म से, राग-द्वेष से बचो, तभी संवर सहित निर्जरा होगी।
- भाव से नग्न होना महत्वपूर्ण है, यह किसी को दिखाया नहीं जा सकता।
- भाव कर्म के माध्यम से नोकर्म में अंतर आ जाता है।
- क्रियाये जड़ की नहीं आत्मा की हैं, यह व्यक्तशरीर से होती है, लेकिन उनके कर्ता हमारे भाव ही हैं।
- भावों को मोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है मोह को मरोड़ (छोड़) दो।
- द्रव्य के लिए शायद किसी से पूछना पड़े लेकिन भावों के लिए किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है।
- भावों में द्रव्य की मुख्यता नहीं होती, द्रव्य से जब काम लेते हैं तब उपयोगी होता है लेकिन भाव तो हमेशा उपयोगी है।
- तिर्यांचो में द्रव्य प्रणाली नहीं चलती वहाँ तो भावों से ही कार्य होता है।
- जैनधर्म भाव-प्रधान है, द्रव्य को नकारता तो नहीं है पर गौण अवश्य कर देता है।
- भाव बढ़ते हैं तो द्रव्य बढ़ता जाता है, बाजार में भाव बढ़ने पर थोड़ा-सा भी माल हो तो मालामाल हो जाते हैं। द्रव्य अंक है और भाव उसके पीछे लगने वाला शून्य है |
- भावों के परिवर्तन से द्रव्य के रूप, लावण्य व वैभव में परिवर्तन आ जाता है।
- भाव सुधारने का प्रयास करो द्रव्य तो अपने आप नाचता हुआ आ जावेगा।
- अर्हंत-भक्ति में मेंढ़क का नाम आ गया आपका नाम नहीं आया। यह भावों की ही महिमा है।
- भावों में उन्नति नहीं होती है तो इन द्रव्यों का कोई मूल्य नहीं है।
- मानसिक मंत्र महत्वपूर्ण माना जाता है। मानसिक मंत्र में मन, वचन एवं काय तीनों में स्तब्धता आ जाती है जिसके माध्यम से अंतर्मुहुर्त में कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। सांसारिक सुख के साथ मोक्ष सुख का दाता भी वही है। मनोयोग से सुनने पर सम्यक दर्शन की भूमिका बनती जाती है।
- भावों के संकल्प से ही (आप रक्षासूत्र से) शोर/सूतक से बच जाते हैं।
- विमान से भी वेगवान भाव(कर्म) हैं।
- वातावरण की शुद्धता/अशुद्धता भावों पर ही आधारित है।
- आपको पूजन का प्रशिक्षण मेंढ़क के भावों से लेना चाहिए।
- संगीत का आनंद भाषा से नहीं भावों से आता है।
- जो भाव परक साधना में जागृति नहीं रखता वह कभी उन्नति नहीं कर सकता।
- जो अभी नहीं कर पा रहे हैं लेकिन भावना भा रहे हैं तो वह कार्य परभव में अच्छे से कर लेता है।
- अपनी प्रभावना नहीं प्रभावना धर्म की हो ऐसी अपनी भावना हो।
- संकल्प और भावनाओं से कार्य बहुत जल्दी हो जाता है।
- भावना (उद्देश्य) के अनुसार ही हमारे जीवन का निर्माण होता है।
- जीवन में भावों के माध्यम से ही सब कुछ पाया जा सकता है।
- उद्देश्य के प्रति हमारे भाव जागृत रहें, हमें वीतराग-विज्ञान पाना है।
- भाव के अभाव में जो घटना घटती है वह धर्म, अधर्म का रूप नहीं ले सकती।
- सुख-दु:ख के कारण संसार में और कोई नहीं मात्र हमारे ही परिणाम हैं।
- अभिशाप के भाव हमेशा पतन में कारण होते हैं।
- किसी भी काल में सुधारो अपने परिणामों को स्वयं अपने को ही सुधारना है।
- पशु द्रव्य को नहीं भाव को ही पकड़ता है। कभी भी पशु में द्रव्य, भाव लिंग का भेद नहीं किया गया।
- भावों की पकड़ के लिए भाषा की आवश्यकता नहीं होती।
- सम्प्रेषण के माध्यम से दूसरे के दु:ख को दूर करने के लिए भाव रूपी तरंगों को भेजा जा सकता है। इसके लिए मात्र आत्मीयता चाहिए।
- गुणीजनों को देखकर प्रमोद भाव प्रकट करें, इसमें गुणी का आदर हो जाता है।
- पारिणामिक भाव त्रैकालिक होते हैं, इसलिए परम शुद्ध पारिणामिक भाव को ध्येय बनाना चाहिए।
- जिससे आत्मा में परिणाम का लाभ होता है, उसे पारिणामिक भाव कहते हैं।
- स्वप्न, भावना का मॉडल है।
- बारह भावनाएँ वैराग्य उत्पन्न कराने में माँ के समान काम करतीं हैं।
- परिणामों में ही सब कुछ है परिणाम ही परिवर्तित होते रहते हैं। इसलिए हमें हमेशा अच्छे परिणाम बनाये रखना चाहिए।