अनुशासन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- कठोरता के बिना "अनुशासन" चलता ही नहीं।
- नियम, संविधान, लचकदार नहीं होना चाहिए, कानून तो कठोर ही होना चाहिए, वरन् व्यवस्था बिगड़ जाती है।
- कमल इतनी उष्णता को सह रहे हैं, तभी तो खिले हुये रहते हैं, वैसे ही कठोर "अनुशासन" बनाये रखेंगे तो आपके घर में हमेशा मर्यादायें कायम रहेगी।
- सूर्य की किरणें शुरूआत में कोमल बाद में कठोर ही होती हैं, फिर भी कमल को खिला देती हैं।
- कठोरता का अनुभव करने से जीवन में अच्छा फल मिलता है।
- आदेश देने वाला सभी को खुश नहीं रख सकता।
- पाप के डर से मर्यादा में रहना चाहिए, इसी का नाम अनुशासन है।
- अनुशासन में रहना पापभीरूता का प्रतीक है।
- कार्यक्रम की शोभा अनुशासन से ही हुआ करती है।
- कार्य सानंद सम्पन्न तभी होता है, जब संकल्प और अनुशासन दृढ़ हो। बाहरी शासन एक सीमा तक अनिवार्य होता है। समझदार को इशारा काफी नासमझ को ये सारा भी कम है।
- आप स्वयं खुद खुदा बनना चाहते हो तो खुदा के बंदे तो बन जाओ, खुदा बनने की शुरुआत हो जावेगी। आप स्वयं खुद खुदा बनना चाहते हो तो खुद में एक डंडा लगाओ। दूसरे पर डंडा लगाकर अधिकार पूर्वक खुदा मत बनो।
- हम अपने आपको नियंत्रण में रखने का प्रयास करें दूसरा अपने आप नियंत्रण में आ जावेगा।
- दूसरे को नियंत्रण में रखना कमजोरी है।
- अपने को नियंत्रण में रखना अपने कोस की बात मानी जाती है।
- भगवान् महावीर ने किसी पर शासन नहीं चलाया, वे आत्मानुशासन में लगे रहे।
- नियंत्रण आस्था के ऊपर आधारित रहता है।
- हम प्रतिष्ठा नहीं चाहते स्व में प्रतिष्ठित होना चाहते हैं।
- पर की ओर जाना आक्रमण माना जाता है, स्व की ओर आना प्रतिक्रमण माना जाता है।
- आत्मानुशासन ही परम शासन है, आत्मानुशासन से किसी को कष्ट नहीं होता लेकिन दूसरे पर शासन जमाने पर दूसरे को कष्ट अवश्य पहुँचता है।
- किसी दूसरे पर शासन करने का भाव ही हिंसा है।
- एक कार्य में लगे दूसरे कार्य के बारे में सोचना, चिन्ता करना अनुशासन हीनता मानी जाती है।
- हम अपने पर अधिकार न रखकर दुनियाँ पर अधिकार जमाने का भाव करते हैं, यही संसार की जड है।
- शिष्य और शीशी को डॉट अवश्य लगाना चाहिए। यदि शीशी में डॉट न हो तो माल सुरक्षित नहीं रह सकता।
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