अनुभव विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- अनुभव ज्ञान की सुगंधी है, शास्त्र की नहीं।
- अनुभव का जीवन, जीवन माना जाता है। दूसरे पर आधारित जीवन जीवन नहीं माना जाता।
- स्वं (आत्मा) अनुभव में इसलिए नहीं आ रहा है क्योंकि वह इन्द्रियों का विषय नहीं बन सकता।
- सूक्ष्मता में जाने पर आगम ही आधार बनेगा।
- अनुभवगम्य में दूसरे की तुलना नहीं होती।
- अनुभव स्व का होता है पर का नहीं और अनुभव वर्तमान का, उसी समय का होता है भूत, भविष्य का नहीं।
- वर्तमान में जो अनुभव हो रहा है वह स्वभाव नहीं है इसलिए इसमें हर्ष-विषाद नहीं करना चाहिए बल्कि समता धारण करना चाहिए।
- मोक्षमार्ग में मात्र आत्मा का ही अनुभव होता रहता है ऐसा नहीं है साता-असाता कर्म का भी अनुभव होता है इसमें हर्ष-विषाद न करके समता रखने से कर्म की निर्जरा होती रहती है।
- ज्ञान व श्रद्धान त्रैकालिक का हो सकता है किन्तु अनुभव (अनुभूति) तो वर्तमान का ही होता हैं।