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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अंतर्दूष्टि

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    अंतर्दूष्टि विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

    1. अंतर्दूष्टि अपने आप में महत्वपूर्ण होती है, जिसे वह प्राप्त है वह महान् पुण्यशाली है।
    2. आरम्भ-परिग्रह पाप के कारण हैं, इन्हें शत्रु समझकर दूर से ही छोड़ दो, ये अपनी परिधि बाहर की भाँति है।
    3. अपना चित्र अन्यत्र और कहीं नहीं है, अपने ही अंदर है, एक बार आँख बंद करके उसे देख तो लो।
    4. दुनियाँ में सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि दुनिया उसी को अपना मानती है, जो कभी अपना न हो सका।
    5. हमारा बड़प्पन कार्य के पहले ही प्रस्तुत हो जाता है और महान् व्यक्ति बड़े-बड़े कार्य करते जाते हैं, पर अपने मुख से कुछ नहीं कहते।

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