अंतर्दूष्टि विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- अंतर्दूष्टि अपने आप में महत्वपूर्ण होती है, जिसे वह प्राप्त है वह महान् पुण्यशाली है।
- आरम्भ-परिग्रह पाप के कारण हैं, इन्हें शत्रु समझकर दूर से ही छोड़ दो, ये अपनी परिधि बाहर की भाँति है।
- अपना चित्र अन्यत्र और कहीं नहीं है, अपने ही अंदर है, एक बार आँख बंद करके उसे देख तो लो।
- दुनियाँ में सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि दुनिया उसी को अपना मानती है, जो कभी अपना न हो सका।
- हमारा बड़प्पन कार्य के पहले ही प्रस्तुत हो जाता है और महान् व्यक्ति बड़े-बड़े कार्य करते जाते हैं, पर अपने मुख से कुछ नहीं कहते।