आत्मानुशासन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- पर वस्तुएँ कभी भी राग-द्वेष प्रदान नहीं करती, ऐसा अगाढ़ श्रद्धान रखना ही "आत्मानुशासन" है।
- दूसरे की आलोचना, प्रशंसा की ओर ध्यान ही नहीं देना, यह संसार बाजार है, इसमें मत लुटना।
- आत्मा के स्वभाव के अनुरूप चलना ही "आत्मानुशासन" कहलाता है।
- "आत्मानुशासन" से रहित व्यक्ति शासन-प्रशासन को शासित नहीं कर सकता है। यह तात्कालिक कटु है, लेकिन इसका विपाक (फल) अति मधुर है।
- आगम को अच्छे ढंग से जानने वाला ही व्यवहार कुशल हो सकता है।
- इन्द्रिय और मन को पुष्ट न होने देना ही "आत्मानुशासन" है।
- डॉट के बिना शिष्य और शीशी का भविष्य ही क्या ?
- डॉट अर्थात् ढक्कन न हो तो शीशी की सामग्री फैल सकती है और शिष्य को डॉटा न जाए तो बिगड़ सकता है।
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