आस्था विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- आस्था के बल पर अंजनचोर भी निरंजन बन गया, आप भी इस मार्ग (मोक्ष) पर "आस्था" रखो, निरंजन बनने में फिर देर न लगेगी।
- आस्था की अभिव्यक्ति हम चारित्र के माध्यम से ही कर सकते हैं।
- आस्था डगमगाने से ही डर लगता है, आस्थावान तो निर्भीक होता है।
- आस्था के बाद रास्ते पर चलने की बात होती है, बीच में नास्ता की माँग नहीं।
- मोक्षमार्ग में आस्था ही ब्याना है, उसके बिना रत्नों की खरीदी नहीं होती, रत्नत्रय प्राप्त नहीं होता।
- आस्था की धरती पर ही चारित्र का महाप्रासाद खड़ा होता है।
- चारित्र को आस्था, धारणा के माध्यम से बल मिलता है।
- मोक्षमार्ग में कुछ जबरन थोपना नहीं होता बल्कि अंतरंग से स्वीकारना होता है, इसी अंतरंग स्वीकृति का नाम आस्था है।
- आस्था के माध्यम से मार्ग की पहचान हो जाती है, जब आस्था के माध्यम से मार्ग की पहचान हो जाती है तो फिर मार्ग एकदम सीधा हो जाता है।
- वृक्ष का छायादार तना मूल पर ही आधारित है - पेड़ में ऊपरी अस्थिरता भले हो लेकिन मूल में कोई भी अस्थिरता नहीं रहती।
- आस्था के कारण ही क्रिया, चारित्र बन जाती है और चरण पूज्य बन जाते हैं।
- आस्था को शुद्ध निर्मल तेल की तरह बनाये रखो फिर आपके पास में अंधेरा आ ही नहीं सकता |
- अवस्था न होते हुए भी आस्था से व्यवस्था करते जाना चाहिए।
- आस्था में किसी काल में अंतर नहीं होता।
- विश्वास (आस्था) के माध्यम से हम मूल स्वरूप तक पहुँच जाते हैं।
- श्रद्धा की आँख से देखो तो वीतराग प्रभु दिखते हैं और ज्ञान के माध्यम से देखो तो हम प्रभु से भी बड़े दिखते हैं।
- आस्था बहन है और ज्ञान उसका भाई है। बड़ी बहन से छोटा भाई माना जाता है। भाई का महत्व बहन से बढ़ जाता है। ज्ञान और चारित्र को बढ़ाने वाली होती है-आस्था।
- रास्ता चलने के लिए आस्था की आवश्यकता है, दिमाग की नहीं।
- आस्था एक-सी रहती है, विचारों में भेद-भिन्नता रहती है। विचारों की तरंगें आस्था को क्षति पहुँचाने में कारण बनती हैं लेकिन सही आस्था वही है जो इन विचारों की तरंगों से प्रभावित नहीं होती। सपनों को साकार बनाने के लिए आस्था मजबूत बनानी पड़ती है।
- ज्ञान से, चारित्र से पेट नहीं भरता, आस्था के बिना भूख नहीं मिटती।
- भाव प्रत्यय से ही यात्रा पूर्ण होती है।
- जैनदर्शन में जानने से पूर्व मानने की बात कही गयी है, इसी का नाम आस्था है।
- साधना श्रद्धा के माध्यम से आगे बढ़ती है।
- सही-सही श्रद्धान आचरण के बाद बनता है।
- आस्था के बिना जीवन में विकल्पात्मक प्रश्न हल नहीं किये जा सकते।
- प्रयोग के बिना आस्था को मूर्तरूप प्राप्त नहीं होता।
- अपनी शक्ति पर विश्वास रखो, अपने आप उत्साह जागृत हो जाता है।
- श्रद्धान जिस पर है, उस पर प्रयोग करो, डरो मत, अच्छे ढंग से कदम रखिये पीछे की बात भूल जाइए।
- यह श्रद्धान (आस्था) वह धरती है, जिस पर मोक्ष महल खड़ा होता है।
- विश्वास का महत्व होता है मोक्षमार्ग में ज्ञान का नहीं, परख को नहीं विश्वास को महत्व दिया जाता है। मोक्षमार्गी में श्वांस-श्वांस में विश्वास भरा होता है।
- विश्वास के अभाव में श्रेय और वात्सल्य समाप्त होता जा रहा है।
- क्षमता व संकल्प श्रद्धान पर आधारित रहते हैं।
- धर्म पर एक बार श्रद्धान हो जाता है तो सागर के स्थान पर चुल्लु भर संसार रह जाता है।
- जहाँ श्रद्धान बना रहता है वहाँ थकावट का अनुभव नहीं होता।
- विश्वास के माध्यम से हम मूल स्वरूप तक पहुँच जाते हैं।
- अकेले आये थे, अकेले जाना है, यह तो याद रखते हैं पर कर्म साथ लाये थे और कर्म साथ ले जाओगे यह श्रद्धान भी मजबूत रखना चाहिए।
- आस्थावान ही इन धर्मक्षेत्रों को सुरक्षित रख सकता है।