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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • आर्जव

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    आर्जव विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. हमारी दृष्टि में सरलता नहीं है, दृष्टि में सीधापन होना बहुत महत्वपूर्ण है।
    2. सूक्ष्म की बात करते हैं, लेकिन सूक्ष्म-दृष्टि भी रखना चाहिए। आत्मा को देखने के लिए सूक्ष्म-दृष्टि की आवश्यकता है। भीतर से दृष्टि में एकाग्रता आनी चाहिए।
    3. संतुलन में ऋजुता रहती है। आज संतुलन के अभाव में बातों में भी सीधापन नहीं आ रहा है।
    4. दृष्टि में ध्रुव, लक्ष्य दिखना चाहिए, अर्जुन की भाँति।
    5. दृष्टि एक पर लगी रहती है तो बाह्य पदार्थ बाधक नहीं हो सकता।
    6. बहुत दूर तक न चलो, थोड़ा चलो पर सीधा तो चलो। युक्ति से, भक्ति से चलो। जैसे टेड़ी नली में धागा डालना है धागा के कार्नर में गुड़ लगा दिया चींटी उसे पकड़कर उस पार ले गयी।
    7. आर्जव धर्म सीधे होने की बात सिखाता है। हमारे, मन, वचन, काय में सीधापन होना चाहिए।
    8. जो सीधा होता है, वह सादा भी होता है, लेकिन आज हाई लिविंग विदाऊट थिंकिंग हो गया है। हाईलेविल पर आज कोई नहीं जी सकता मात्र भगवान जीते हैं क्योंकि उनका अकालमरण नहीं होता।
    9. अतीत, अनागत वक्र है, वर्तमान सीधा है वर्तमान में जीना ही सीधा सरल माना जाता है।
    10. अतीत की स्मृति के कारण वर्तमान से वंचित होना पड़ता है। वर्तमान की मृति (मरण) और अतीत की स्मृति एकार्थवाची है। स्व की अनुभूति के लिए वर्तमान चाहिए। मन, वचन व काय की समष्टि में आनंद आता है।
    11. उस समय एक का ही अनुभव होता है, भविष्य जब भी आवेगा तो वर्तमान में ही आवेगा। इसलिए था, थे, थी, गा, गे, गी छोड़ दो। रहा, रही, हैं (वर्तमान) में आ जाओ यही सरल मार्ग है।
    12. मन जिनवाणी की गोद से उछलना चाहता है लेकिन जिनवाणी की गोद में ही हमेशा आर्जव धर्म बना रह सकता है।
    13. आप जिनवाणी को बच्चे की तरह सुनोगे तो ज्यादा सुनने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, किसी एक का भी केवलज्ञानी पूर्ण अतीत नहीं कह पावेगे तो फिर उसे जानने की आप इच्छा क्यों रखते हो ?
    14. सीधा सादा जीवन जीने के लिए सीधा सादा रास्ता है।
    15. सीधा बोलना, सीधा चलना, सीधा सोचना सीखो। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो शांति से बैठ जाओ, फिर सीधापन अपने आप आ जावेगा।
    16. हर बात में टेड़ापन, हमारा जीवन कुत्ते की पूँछ की तरह है।
    17. हम दुनियाँ को तो सीधा करने में लगे रहते हैं पर अपने को सीधा करना नहीं सीख पाये। यही तो सबसे बड़ी विडम्बना है।
    18. साधु अपना टेड़ापन निकालता है, भगवान के सामने रोते हुए कहता है कि हे भगवान! मुझे कुछ हठात् करना पड़ता है न चाहते हुए भी।
    19. अपने को ही कर्म, कर्ता व साधन बनाओ मात्र एकत्व की भावना भाओ यही एक श्रेय मार्ग है, आर्जवधर्म है।
    20. वर्तमान है तो संवेदन है, अतीत का संवेदन करने का अधिकार किसी को नहीं है, अनागत का तो सवाल ही नहीं उठता।
    21. सरल कोण बन जाता है तो रेखा में एक भी अंश की कमी नहीं आती। आपका जीवन Triangle है। सीधा सरल बनाने का प्रयास करें।
    22. अपना ही उपयोग आनंद का धाम है और आक्रंदन का भी।
    23. उन प्रभु को बार-बार नमस्कार करते हैं, जिनका शांति का रूप हमें शांति का उपदेश देता रहता है।
    24. दृष्टि की वक्रता धर्म में बाधक है क्योंकि थोड़ी-सी भी वक्रता मोक्ष मार्ग में सहनीय नहीं है।
    25. वर्धमान कहते हैं कि वर्धमान मिलेंगे तो वर्तमान में मिलेंगे।
    26. हमें अपनी दृष्टि सब ओर से हटाकर वर्तमान में ही केन्द्रित करना चाहिए। जब हम वर्तमान को पकड़ लेंगे तो वर्धमान बनने में देर नहीं लगेगी।
    27. कल को पाने वाली दृष्टि टेडी मानी जाती है दृष्टि को चलाने की नहीं बल्कि स्थिर करने की आवश्यकता है।
    28. अपने उपयोग का टेड़ापन हमें अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचा सकता।
    29. हम अपनी दृष्टि को वर्तमान से हटाकर भविष्य के मूल्यांकन में लगा देते हैं, यही तो हमारी दृष्टि का टेड़ापन है।

    Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव


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