संस्कार विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार.
- हिन्दी भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
- वीतरागता की उपासना करने वाला, रत्नत्रय की आराधना करने वाला ही संस्कारवान है।
- घर की रक्षा के समान, इन जिनालयों की सुरक्षा के भी संस्कार अपने बच्चों में डालें।
- जैसे बच्चों के ऊपर अर्थ के संस्कार डालते ही वैसे ही परमार्थ के अच्छे संस्कार डालो।
- धर्म के संस्कार वहाँ पर भेजना चाहिए, वहाँ पर जा करके रखना चाहिए जहाँ पर सभी को प्रकाश मिल सके।
- जिस प्रकार प्रकाश में प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती। अंधकार में उसका मूल्य और महत्व बढ़ जाता है। उसी प्रकार आज यदि आपका जीवन संस्कारित है, तो जो संस्कारहीन व्यक्ति हैं, उनको संस्कारित बनाने का प्रयास कर कीजिये। इसके द्वारा आपके तन, मन और धन का उपयोग अच्छा हो सकता है।
- प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होता है कि वह एक संस्कारित जीवन का निर्माण करे। इसी से धर्म आगे बढ़ सकता है। इसके माध्यम से स्व और पर दोनों का कल्याण होता है।
- शरीर के साथ जो धर्म के द्वारा संस्कारित आत्मा है उसका मूल्य है और उस संस्कारित आत्मा के कारण ही शरीर का भी मूल्य बढ़ जाता है।
- बच्चों को यदि माता-पिताओं के माध्यम से संस्कार नहीं मिलेंगे तो वह बच्चा घर को संभाल नहीं सकेगा।
- एक लेख में आया था विवाह न करो। क्यों? संतान होगी, उसका पालन-पोषण से परिवार बढ़ेगा तो सुख-दुख आयेंगे किन्तु बिना विवाह के भी बच्चे हो सकते हैं तो उन्हें छोड़ देंगे। सोचो! पशु भी ऐसे नहीं करते, जब तक पंख नहीं आते, उनके और आप पैर वालो क्या करते हो सोचो? कहाँ गये आपके संस्कार ?
- जब कूँए में ही भांग पड़ गई तो लोटा छानने से क्या होगा?
- आज ये पढ़ाया जाता है कि ब्रह्मचर्य कोई वस्तु नहीं वासना तो समय से जागृत होगी बस विवाह मत करो। अब आपके पास आत्मा को कसने के लिए कौन सा प्वाइंट है?
- शिक्षा पद्धति ऐसी होना चाहिए जिसमें संस्कार विकसित हों, नैतिक शिक्षा पर बल होना चाहिए ताकि मानवीय मूल्यों का विकास हो।
- देवगति में संस्कार देने की बात नहीं है। इस मनुष्य पर्याय में सम्यक ज्ञान पूर्वक संस्कार डालना चाहिए तभी देवगति में जाकर समवसरण में जाने के भाव होंगे। यदि सम्यक दृष्टि है तो दूसरे भव में संस्कार काम आ सकते हैं। मिथ्यादृष्टि तो सब भूलकर विषय कषायों में लग जाता है।
- अनादिकाल से आत्मा की दीवार पर धर्म का कोई रंग रोगन हुआ नहीं अब यदि आप नया धर्म का रंग लगाना चाहते हो तो पुराने संस्कारों को साफ करना होगा।
- जिस प्रकार कारीगर ईंट चूना आदि से मात्र मकान तैयार करता है किन्तु अन्य कोई उसे सुसज्जित करते हैं। इसी प्रकार माता-पिता तो बालक को जन्म मात्र देते हैं किन्तु गुरु उसे सद्संस्कारों से सुसज्जित कर देते हैं।
- अरिहंत भगवान् नवनीत के समान हैं, सिद्ध भगवान् घी के समान हैं तथा हम सभी दूध के समान हैं। इस दूध में धर्म संस्कारों की जामन डालकर जमाओ और फिर वैराग्य की मथानी से स्वयं का मंथन करो।
- ये ज्ञान और संयम के संस्कार थोड़े भी पर्याप्त हैं मुक्ति की प्राप्ति के लिए। बीज के समान योग्य वातावरण पाकर यह संस्कार एक दिन बहुत बड़े वट वृक्ष के रूप में प्रतिफलित होंगे।
- होटल का खाना और डिब्बे का दूध इन दोनों से आपके बच्चों पर धार्मिक संस्कार नहीं डल सकते।
- वीतरागी का संस्कार मिले तो राग वीतरागता में बदलेगा नियम से।
- हमें अपनी पीढ़ी में ऐसे ही संस्कार डालना चाहिए जिसके माध्यम से उनका आर्थिक विकास न होकर आत्मिक विकास हो।
- आत्मा की स्वतंत्रता के लिए संस्कारों का झंडा फहराएँ।
- रत्नत्रय के पवित्र संस्कारों के द्वारा पाप के संस्कारों से मुक्त होकर आत्मा शुद्ध बन सकती है।
- पवित्र संस्कारों के द्वारा ही पतित से पावन बना जा सकता है।
- जो व्यक्ति पापों से अपनी आत्मा को छुड़ाकर केवल विशुद्ध भावों के द्वारा संस्कारित करता है वही संसार से ऊपर उठ पाता है।
- संस्कारों से जीवन को आकार मिलता है।
- जो घर में भोजन न करके बाजार में खाता है उसके धन और धर्म दोनों के संस्कार चले जाते हैं।
- आज कितना भी धार्मिक वातावरण बना लिया जाता है फिर भी धर्म के संस्कार नहीं पड़ रहे हैं।
- हिंगड़े हींग के डिब्बे में से हिंगड़ा निकाल कर साफ कर दो और उसमें कस्तूरी रख दो तो वह हिंगड़ा भी अपना प्रभाव डालता है, उसी प्रकार आज बच्चों को कितने अच्छे संस्कार दो तो भी वह कुसंस्कार रूपी हिंगड़ा छूटता नहीं है।
- जिनवाणी की शरण से, गुरुओं के समागम से, सदाचरण से संस्कारित होकर जैसा वातावरण यहाँ है वैसा आप अपने ज्ञान से दूसरी जगह ले जा सकते हैं।
- हाँ वातावरण अच्छा नहीं है, वहाँ भी यहाँ जैसा जीवनयापन कर सकते हैं, अपने पूर्व संस्कारों से। और वहाँ रहने वाले व्यक्तियों को भी जिनवाणी शरण गुरु समागम की चाह पैदा कर सकता है।
- रत्नत्रयरूपी संस्कार ही हमारे काम आयेंगे।
- मुक्त होने का एक ही रास्ता है हम आत्मा के ऊपर स्नत्रय के संस्कार डालते चले जायें।
- संस्कार चश्मे के समान है जो आत्मा को देखने का साधन बन जाते हैं और आत्म विकास के लिए कारण होते हैं।
- रुचि और आस्थापूर्वक डाले गये संस्कार ही आगे काम आते हैं।
- मनुष्य भव अच्छे संस्कार डालने के लिए आषाढ़ के समय खेत में बीज डालने/बोने के समान हैं इसलिए मनुष्य जीवन के समय को व्यर्थ मत खोओ।
- संतान के ऊपर आपका सबसे बड़ा उपकार यही है कि उसके ऊपर अच्छे संस्कार डालो, उन्हें धर्म मार्ग पर लगाओ।
- बच्चों पर आप मात्र पैसे कमाने के संस्कार डालोगे तो आप उन पर उपकार नहीं अपकार कर रहे हैं।
- धन कमाने के संस्कार डालने की आवश्यकता नहीं है, वे तो स्वयं आ जाते हैं। इन विषय भोगों के वातावरण में हमें बच्चों में धर्म के संस्कार डालना ही चाहिए।