सम्यक दर्शन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- सम्यक दर्शन की प्रयोगशाला के लिए कोई स्थान नहीं। चाहिए इसके लिए तो हम जितना भीतर रहेंगे उतना निखार आयेगा। बिना व्यय के आय ही आय।
- यदि कोई इस प्रयोग शाला में आता है तो साधन सामग्री का कोई अभाव नहीं उसको अच्छी तरह खिला–पिलाकर पुष्ट करो।
- प्रतिकूलता में अनुकूलता चाहते हैं इसलिए निर्विचिकित्सा अंग नहीं पलता।
- जिस प्रकार माइक में करंट का महत्व है उसी प्रकार मोक्षमार्ग में सम्यक दर्शन का महत्व है।
- जीणोंद्धार उसका किया जाता है जिसकी नींव पक्की हो, दीवाल आदि में क्रेक आ जाये जब लेकिन नींव में ही यदि कमी आ जाये तो उसका जीणोद्धार ही नहीं होता। ऐसा ही आप लोगों को समझना चाहिए। सम्यक दर्शन के प्रौढ़/मजबूत होने पर ज्ञानचारित्र के फूल खिल सकते हैं।
- सम्यक दर्शन की भूमिका बनाये रखना चाहते हो तो कषायों को आप घटाइये। जितनी घटा सकते हैं उतनी घटाइये।
- सम्यक दर्शन के बिना आपके चारित्र की शुद्धि नहीं हो सकती है और चारित्र में विकास नहीं हो सकता है इसलिए हमें सम्यक दर्शन को अच्छे से विशुद्ध बनाये रखना चाहिए।
- सम्यक दर्शन के साथ जो चारित्र होता है वो कर्म निर्जरा निश्चित रूप से करता है।
- भीतरी रुचि के कारण से ही सम्यक दर्शन होता है। एक पशु भी भीतरी रुचि के कारण सम्यक दर्शन प्राप्त कर सकता है और हम सम्यक दर्शन का स्वरूप पढ़ते रहे फिर भी भीतरी रुचि नहीं हो पाती है इसलिए सम्यक दर्शन से दूर रहते हैं।
- हमारे पास सम्यक दर्शन है तो हम उसका सदुपयोग करते हैं तो हमारी कर्म निर्जरा होती जाती है और मोक्ष के लिए वो परम्परा से कारण होता है। हम यदि उसका दुरुपयोग करेंगे तो वो हमारे लिए कर्म निर्जरा का कारण नहीं होता है।
- उत्कृष्ट विशुद्धि हम प्राप्त कर सकते हैं तो सम्यक दर्शन के माध्यम से ही कर सकते हैं।