राग-द्वेष विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- राग-द्वेष हमारे अंदर होते हैं पदार्थों में नहीं होते हैं इसलिए पदार्थों को देखकर राग-द्वेष नहीं करना बस यही जीता जागता समयसार है। समयसार और कोई वस्तु नहीं है।
- पदार्थों को देखते हैं तो उस समय हमारे अन्दर के समयसार का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार करने से हम असंख्यात गुणी कर्म निर्जरा कर जाते हैं।
- वैराग्य के बिना पंचेन्द्रिय के विषयों का निरोध नहीं हो सकता है। वैराग्य के साथ ही इन्द्रियों का निरोध होता है।
- राग-द्वेष नहीं करना ही सबसे बड़ी साधना है। यह साधना का मुख्य बिन्दु है।
- जितना आप द्वेष करते जायेंगे उतने आपके शत्रु बढ़ते चले जायेंगे और जितने आप हाथ मिलाते चले जायेंगे, वैसे आपके हाथ बढ़ते चले जायेंगे।
- जमकर दुश्मनी करो किन्तु इतना तो ख्याल रखो कि वक्त आने पर दुश्मन दोस्त बन जाये।
- जैसे लाइट का मीटर लगाते हैं तो लाइट जलाये या न जलाये मीटर चार्ज तो देना ही पड़ता है इसी प्रकार राग-द्वेष करो या न करो बंध तो होता ही रहेगा जब तक कषायरूपी मीटर से आपका सम्बन्ध होता है।
- जिसके पास राग-द्वेष है उसे हमेशा कर्म बंध होता रहता है। जैसे-बैंक में पैसे जमा कर दो फिर उसका ब्याज बढ़ता ही रहता है।