पुरुषार्थ विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- हमारी यात्रा पूर्ण नहीं हो ऐसा नहीं है, सही दिशा में पुरुषार्थ और उचित संपर्क सूत्र स्थापित करना यात्रा पूर्ण करने के लिए आवश्यक है।
- कर्मों की बाढ़ में यदि हम अपने आपको सम्भाल लेते हैं, तो यह हमारा सम्यक पुरुषार्थ माना जायेगा।
- परिश्रमी के लिए रात्रि भी दिन के भाँति प्रकाशवान होती है।
- पुरुषार्थहीन के लिए दिन भी रात्रि के अंधकार के समान हो जाता है |
- रागी चिंता में रात बिताता है, वीतरागी रात्रि में भी चिंतन करते हैं।
- प्रतीक्षा हमेशा सिर दर्द की सम्पादिका है, अत: हर क्षण को कार्य में पुरुषार्थ के साथ उपयोग करें।
- प्रतीक्षा की ओर चले जाओगे तो पुरुषार्थ कम हो जायेगा।
- आप लोग बातों बातों के लिए हिल जाते हैं किन्तु कार्य करने के लिए नहीं हिलते। योजनाएँ बहुत बनाते हैं परन्तु सरकार भगवान् भरोसे होती है।
- आदर्श को सामने रखने मात्र से काम नहीं होता किन्तु आदर्श को सामने रखकर तदनुरूप पुरुषार्थ करने से काम होता है।
- जैसे आप अपने जीवन में वित्त के लिए पुरुषार्थ करते हो वैसा आत्मोत्थान के लिए भी धर्म पुरुषार्थ करो।
- यदि कल के दिन को उज्ज्वल देखना चाहते हो तो आज के दिन पुरुषार्थ करो।
- दुनिया के उद्यम नहीं, कर्म निर्जरा का भी एक उद्यम है। इस प्रकार का उद्यम करेंगे तो निश्चित रूप से कर्म निर्जरा होगी।
- बुराई के लिए पुरुषार्थ नहीं, अच्छाई के लिए पुरुषार्थ आवश्यक है।
- अर्थ पुरुषार्थ और काम पुरुषार्थ का फल तो हमने अनन्त बार भोग लिए, पर धर्म पुरुषार्थ का फल प्राप्त नहीं किया।
- अर्थ तथा काम पुरुषार्थ जब हावी हो जाते हैं, तब अधोगति की ओर मुख हो जाता है। इनको मुख्य नहीं बनाना।
- आज अर्थ पुरुषार्थ मुख्य हो गया है। इसमें परिग्रह संज्ञा २४ घंटे उद्दीप्त रहती है।
- पुरुषार्थ दिमाग के साथ करो।
- दिमाग को निरावाध रखो, आबाद रहोगे ।
- हम लोग उद्यम करते हैं पर राग-द्वेष के माध्यम से। वीतराग के माध्यम से भी उद्यम करो आप सफल होंगे।
- संसारी प्राणी रात दिन उद्यम करता है पर धार्मिक क्षेत्र में पगडंडी ढूँढ़ लेता है। हमें रास्ता वही चलना चाहिए जो मंजिल तब पहुँचा दे।
- काल के भरोसे कोई कार्य नहीं होता। काल के निमित्त से कार्य पूरा हो सकता है। प्रत्येक समय अपने को अपनी तरफ से अपने मन, वचन, काय से उद्यम करना चाहिए। कर्म के प्रति लगाव से काल लब्धि होती है।
- मन में कार्य की पवित्रता का ध्यान रखकर उद्यम करो, अवश्य सफलता मिलेगी। मोक्ष तो होने वाला है पर पुरुषार्थ करना होगा।
- कोई भी कार्य हो उसे विधि पूर्वक करने से सफल होते हैं। विधि पूर्वक करने का अर्थ यह है कि जो क्रिया पहले करने योग्य है, उसे पहले ही करना, जो बाद में करने योग्य हो उसे बाद में करना और जो बीच में करने योग्य है उसे बीच में ही करना। यह विधि है अपनी आत्मा पर भी विधिपूर्वक संस्कार के साथ समय पर विधि पूर्वक कार्य करो।
- अच्छा फल चाहते हो तो योग्य संस्कारों के साथ समय पर विधिपूर्वक कार्य करो।
- समय पर मितव्ययिता के साथ जो विधिवत् कार्य करता है उसी की दीपावली सफल होती है। यदि विपरीत विधि से कार्य होता है तो दिवालिया भी हो सकता है।
- मोक्ष पुरुषार्थ कर्म है और मोक्ष उसका फल है। मोक्ष पुरुषार्थ उस मोक्ष फल को प्राप्त करने की साधना है।
- अर्थ का अर्जन तो सभी देशों में होता है, परन्तु अर्थ पुरुषार्थ भारत देश में होता है।
- पुरुषार्थ का अर्थ है करने योग्य कार्य को करना और न करने योग्य कार्य से विराम ले लेना।
- अर्थ पुरुषार्थ करने वाले भारतवासियों! इस बात का जरूर ध्यान रखना कि-‘जीवन के लिए धन है न कि धन के लिए जीवन।'
- प्रत्येक बूंद में क्षमता है विराटता की किन्तु पुरुषार्थ नहीं करने पर सागर बनना संभव नहीं। विराटता की कोई दरार नहीं, विराटता में कोई दीवार नहीं।