पुरुषार्थ/श्रम विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- विद्या, ज्ञान की प्राप्ति चाहते हो तो सुख को ही आराम दे दो, उसे भूल जाओ। परिश्रम को फूलमाला के समान अपनालो तभी अपने जीवन में कुछ उद्धार कर सकते हो।
- ज्ञान तथा वित्त भी न हो तो भी परिश्रम के द्वारा ख्यातिवान को भी कुछ समय के लिए नीचे बिठा सकते हो।
- ऐसे श्रम अपनाओ जिससे स्व पर हित हो।
- श्रम वीरों का आभूषण है।
- अभीष्ट की प्राप्ति बिना श्रम के नहीं।
- केवलज्ञान की प्राप्ति के लिए श्रम करे, वही श्रमण है।
- जो घड़ी की तरफ देखकर काम करने वाले हैं, उन्हें श्रम का फल तो इष्ट है, पर श्रम इष्ट नहीं है। वे चाहते हैं कि पसीना तक नहीं आवे और बढ़िया-बढ़िया खाने को मिले, ऐसे लोग एक समय भी सुख का अनुभव नहीं कर सकते हैं।
- जो व्यक्ति केवल श्रद्धान करते हुए बैठा है और पुरुषार्थ की ओर अपने कदम नहीं उठा रहा है वह अपने कर्म निर्जरा की ओर ध्यान नहीं दे रहा है।
- मोक्षमार्गी को हमेशा-हमेशा द्रव्यगत नहीं भावगत पुरुषार्थ करना चाहिए। आप अपने प्रत्येक समय परिणामों को टटोलो, चलते फिरते, उठते बैठते हमेशा विपाक विचय धर्मध्यान करो।
- गिरते हुए कोई व्यक्ति उठ जाता है तो हमें उसके पुरुषार्थ को देख करके सीख लेना चाहिए, उसके देखने से हम गिरने से बच जाते हैं। दूसरों को देखकर भी हम संभल जाते हैं।
- कर्मों के वेग को कमजोर करने का नाम पुरुषार्थ है।
- आत्मा की शक्ति को उभारना आत्म पुरुषार्थ है।
- कर्मोदय में होने वाले भावों के ज्ञाता-दृष्टा बस रहो, उसे देखते रहो। यही पुरुषार्थ करो तो मैं शत-प्रतिशत नम्बर दे दूँगा।
- जो व्यक्ति सौ प्रतिशत नम्बर लेना चाहता है वो हमेशा मेहनत भी सौ प्रतिशत ही करता है।
- आत्म शोधन ही दीक्षा की उपलब्धि है, उसे निरंतर बनाये रखना ही पुरुषार्थ है, सच्ची साधना है।