प्रमाद विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
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समस्त प्रमादों में यह निद्रा नामक प्रमाद प्रबल है। यह निद्रा प्रमाद समस्त पाप को उत्पन्न करने वाला अनेक अनर्थों का सागर है।
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निद्रा को लज्जा हीन कहा जाता है।
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एक दिन का प्रमाद शेष पूरा जीवन खा जायेगा इसलिए उससे बचो।
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प्रमाद बहुत बड़ा है वह हमेशा हर जगह टांग अडाता है उससे बचो।
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जिसमें उपयोग बुद्धि लग जाती है वही प्रमाद है।
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कषाय का उदय रहना प्रमाद नहीं है जबकि कषाय करना प्रमाद है।
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प्रमाद के कारण संयमी भी असंयमी हो जाता है।
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यह प्राणी धर्म तो करना चाहता है, प्रमाद छोड़ना नहीं चाहता।
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पुरुषार्थ के माध्यम से प्रमाद पर नियंत्रण लाया जा सकता है। पुरुषार्थ में कमी होने ये व्यक्ति प्रमाद में आता है।
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जो वस्तु जहाँ से उठाई, वहीं रखना प्रमाद रहितता का प्रतीक है।
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कुशा की नोंक पर स्थित ओस की बूंद की तरह मानव जीवन क्षणभंगुर है इसलिए हे प्राणी क्षणभर के लिए भी प्रमाद न करो।
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प्रमाद में रहना जीवन का महत्व नहीं है। अत: जितने समय प्रमाद में रहते हैं वह मेरी उम्र में शामिल नहीं है।
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प्रमाद ठीक नहीं माना जाता है मोक्षमार्ग में।
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ज्यादा प्रमाद हो जाये तो निश्चित रूप से वह व्यक्ति पदच्युत ही होता है, पथच्युत भी हो जाता है।
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श्रम से मत डरों बल्कि प्रमाद से डरो ।
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वीरों के पास श्रम पलता है, कायरों के पास प्रमाद।
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प्रमादी से सब घबराते हैं, पर अप्रमत्त से कोई नहीं।
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बिना प्रमाद के मोक्षमार्ग को अपनाने पर मंजिल पास होती जायेगी।
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प्रमाद-अप्रमाद होना ये सहज व्यापार है इसमें राग-द्वेष की ओर नहीं जाना चाहिए।
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हमें प्रमाद से दूर रहकर धर्मध्यान में मन लगाना चाहिए।
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पर के आहार करके, प्रमादी बनकर पर की बात करता है यह तो ठीक नहीं है।
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विकथा सम्बन्धी प्रमाद हमें नहीं करना चाहिए। जो मोक्ष चाहते हैं उन्हें निष्प्रमाद होकर रहना चाहिए।
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प्रमाद तो महाशत्रु है और ये प्रमाद असंयम की ओर ले जाता है।
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दुकान को खोल करके व्यक्ति यदि सोता है तो, वो दुकान कभी भी विकसित नहीं हो पाती है। वैसे ही आप लोगों ने अच्छी दुकान खोली है, अब इसको चलाने में आलस्य/प्रमाद नहीं करो अच्छे से इसको चलाने से आय अच्छी होती है।