प्रभावना विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- प्रभावना की ओर मत देखो, अप्रभावना से बचने की कोशिश करो।
- मन की अस्थिरता, आज्ञा का उल्लंघन, असंयम का समर्थन इन तीनों के कारण संघ संचालन या प्रभावना कभी नहीं हो सकती।
- निरीहता के साथ वस्तु तत्व का प्रतिपादन करोगे तो जिनधर्म की अच्छी प्रभावना हो सकती है। प्रतिफल की आकांक्षा नहीं होनी चाहिए, इसकी कमी होने से धर्म की क्षति होती जा रही है।
- धार्मिक अनुष्ठान का उद्देश्य मात्र कर्म की निर्जरा और धर्म की प्रभावना होना चाहिए।
- धर्म का जितना उपयोग करोगे उतनी प्रभावना होगी। धर्म की सेवा यही है। यदि कुंए को सुरक्षित रखना चाहते हो तो उसमें से पानी निकालते रहना, उपयोग करते रहना चाहिए।
- आप कहीं भी रहें प्रभावना कर सकते हैं अपनी चर्या के माध्यम से।
- पुराने लोग बड़े-बड़े मंदिर बना गये और नाम तक नहीं, ये है प्रभावना।
- शील, दान, तप के द्वारा भी प्रभावना होती है।
- भावना पूर्वक प्रभावना होती है, बिना भावना के प्रभावना नहीं हो सकती।
- निरीहता के बिना त्यागी का समाज पर प्रभाव नहीं पड़ सकता।
- व्रतों का प्रभाव पड़ता है सादगी होना चाहिए, ज्ञान मात्र प्रभावी नहीं होता।
- निरीहता के अभाव में आचार्य का भी प्रभाव नहीं पड़ सकता।
- ज्यादा प्रभावना की ओर जाओगे तो भावना बिगड़ जायेगी।
- भगवान महावीर के उपदेशों के अनुरूप अपना जीवन बनाओ। यही सबसे बड़ी प्रभावना है। मात्र नारेबाजी से प्रभावना होना सम्भव नहीं है।
- हमारे अंदर यह विवेक हमेशा जागृत रहना चाहिए कि मेरे द्वारा ऐसे कोई कार्य तो नहीं हो रहे जिनसे दूसरों को आघात पहुंचे। यही सही प्रभावना का प्रतीक है।
- केवल लम्बी चौड़ी भीड़ के समक्ष प्रवचन देने से ही प्रभावना होने वाली नहीं है। प्रभावना उसके ऊपर होने वाली है जो अपने मन के ऊपर नियंत्रण करता है और सम्यक ज्ञान के ऊपर आरूढ़ होकर अपनी यात्रा करता है।
- सम्यक ज्ञान के ऊपर आरूढ़ होकर जो यात्रा करता है वही व्यक्ति जिनेन्द्र भगवान् के शासन की प्रभावना करने वाला है।
- निर्दोष व्रत का पालन ही मार्ग प्रभावना में कारण है।
- संसार में जो अज्ञानरूपी अंधकार फैला है उसे यथाशक्ति दूर करके जिनशासन के महात्म्य को प्रकाशित करना प्रभावना है।
- जैसे हम उत्साह के साथ घर के महत्वपूर्ण कार्य करते हैं उसी प्रकार तन-मन-धन को लगाकर उत्साहपूर्वक धर्म की प्रभावना करो।
- तन से, धन से, और वचन से प्रत्यक्ष धर्म प्रभावना कर सकते हैं और परोक्ष रूप से एक स्थान पर बैठकर ‘सुखी रहें सब जीव जगत के, कोई कभी न घबरावे' ऐसी भावनाओं से कर सकते हैं।
- विधान/अनुष्ठान के माध्यम से जो धर्म प्रभावना होती है उससे परस्पर में वात्सल्य भाव बढ़ता है और धर्म से विमुख होने वाला धर्म के मार्ग में लग जाता है।
- जिस व्यक्ति के जीवन में जिनशासन के प्रति प्रेम नहीं, शासन के प्रति गौरव नहीं, उसके जीवन में प्रभावना होना तीन काल में सम्भव नहीं।
- परमार्थ की प्रभावना ही प्रभावना है।
- परमार्थ के लिए कोई धन का विमोचन करे, वह प्रभावना है।
- मात्र जड़ धन पैसे से धर्म प्रभावना होने वाली नहीं है। प्रभावना तो वस्तुत: अन्तरंग की बात है।
- वीतरागता की ही प्रभावना है, राग-द्वेष की प्रभावना नहीं है।