प्राचीन रसोईशाला विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- पहले शुद्ध हवा, शुद्ध भोजन, आदि-आदि सब कुछ था। हाथों से गेहूँ को पीसते थे तो हाथों की एक्साइज हो जाती थी।
- कूटना-पीसना-बीनना तथा पानी भरना आदि-आदि सब काम अपने हाथों से करते थे, कोई नौकर या मशीनें नहीं थी इससे पूरे शरीर की एक्साइज हो जाती थी।
- अब तो कुछ नहीं बचा सब कुछ मशीनों से कार्य होने लगे हैं और एक्साइज अलग से करना पडती है।
- पहले तो चूल्हे पर रोटी बनती थी धुंआ निकलता था, आँखों से नाक से पानी निकल जाता था तो आँख, नाक, गला सब ठीक हो जाते थे।
- अब तो शुद्ध हवा की बात तो दूर शुद्ध आवास तक नहीं बचे।
- पहले घरों में झरोखे, खिड़कियाँ आदि आदि होती थी, मात्रा से हवा का सेवन होता था।
- फसल भी उत्तम होती थी उसमें शुद्ध खाद डलती थी। आजकल तो केमिकल्स मिले रहते हैं, खाद में तो अन्न भी उतना ताकतवर बलशाली नहीं रहा। इसका स्वास्थ्य पर भी, शरीर पर भी प्रभाव पड़ रहा है क्योंकि अन्न उतना शक्तिशाली नहीं रहा।
- आजकल तो बर्तनों को धोते बस हैं कि मांजते भी हैं। आजकल प्राय: मांजने की प्रक्रिया, बर्तन को राख से शुद्ध करने की प्रक्रिया समाप्त सी होती जा रही है।
- बर्तनों को मांजना और धोना होता है। आजकल तो धोना बचा है रोना धोना बचा है।
- भूख लगती है तो सब खा लेता है कब्ज होती है या पेट खाली रहता है तो वात गैस का भूत कबड्डी का ग्राउण्ड बनाकर खेलने लगता है। समय पर भोजन करो नहीं और थोड़ी चाय बिस्किट खा लिए हो गया काम कौन सी कम्पनी की, कैसे बनी कुछ पता नहीं आखिर घर की ही कम्पनी काम करती है।