Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • परिग्रह

       (0 reviews)

    परिग्रह विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. संग्रह का नाम परिग्रह नहीं है, अनावश्यक संग्रह का नाम परिग्रह है। वह अन्यायी है जिसने अनाप-शनाप इकट्ठा कर रखा है।
    2. संग्रह की चिंता से वही मुक्त होता है जो घरबार छोड़कर महाव्रती बन जाता है।
    3. परिग्रही यदि कोई है तो वह एक मात्र मानव है। पेट तो सबके पास है लेकिन मनुष्य पेट के अलावा पेटी भी रखता है।
    4. वस्तुओं को संग्रह करने की ललक का नाम परिग्रह है।
    5. हर्ष का संदेश मिलता है तो गदगद हो जाते हैं, विषाद के विषय में ज्ञात होते ही खदबद हो जाते हैं किन्तु दोनों स्थितियों में परिणाम एक सा होता है। लेकिन परिग्रह सुनते ही मूर्छित हो जाते हैं।
    6. असमता में रक्तचाप कभी-कभी चुपचाप हो जाता है, मूछित हो जाते हैं। परिग्रही मूछित रहते हैं, नींद सयानी होती है, सदा निश्चिंत के पास आती है।
    7. जिससे परिचय हो जाता है वो ज्यादा अच्छा लगने लगता है तो दु:ख से परिचय करें क्योंकि आप बार बार वहीं जाते हैं जहाँ दु:ख होता है। घर में दु:ख होने के बावजूद हम वहाँ जाते हैं क्योंकि परिग्रह के माया-मोह से आप ग्रसित हैं।
    8.  स्वस्थ होने का मात्र एक ही उपाय है परिग्रह का विमोचन।
    9. आज वित्त का अर्जन तो बहुत हो रहा है लेकिन वित्त का उपयोग कैसे करें इसके लिए दिमाग नहीं चल रहा है। यदि अनावश्यक उत्पादन किया जाता है, तो उनका दिमाग नियम से खराब चल रहा है।
    10. मात्र धन का संग्रह करना ही बुद्धिमानी नहीं है बल्कि संग्रहित धन का सही-सही उपयोग करना बुद्धिमानी है।
    11. खानदानी पैसा और नया पैसा में क्या अंतर है? ओल्ड को गोल्ड माना जाता है। और नया बोल्ड माना जाता है।
    12. जिस देश में कृतघ्नता पलती है, उसके पास कितना भी वित्त आ जाये वह किसी काम का नहीं होता।
    13. धन की पूजा करने से धन नहीं आता, धन के ऊपर तिलक लगाने से धन का विकास नहीं होता, किन्तु धन का यथोचित स्थान पर उपयोग करने से ही उसका विकास होगा।
    14. जितना आरम्भ परिग्रह छूटेगा उतनी ही व्यक्ति के निर्विकल्पता होती है। जितना आरम्भ परिग्रह उतनी विकल्पता होती है।
    15. आचार्यों ने परिग्रह संज्ञा को संसार का कारण बताया है और संसारी प्राणी निरंतर इसी परिग्रह के पीछे अपने स्वर्णिम मानव जीवन को गंवा रहा है।
    16. कभी सोचा आपने! कमर में लटकाने वाला चाबी का गुच्छा धन का रक्षक तो हो सकता है धर्म का नहीं।
    17. वस्तु के अभाव में महँगाई नहीं होती पर वस्तु संग्रह से महँगाई होती है।
    18. वही धन परिग्रह है जो धार्मिक क्षेत्र में खर्च न होकर अन्य सांसारिक कार्यों में खर्च होता है।
    19. जिस प्रकार सूर्योदय से पूर्व उजाला होने की आभा पूर्व सूचना है, उसी प्रकार बहु आरंभ, बहु परिग्रह अति संक्लेश परिणाम नरकगति का उदय होने की आभा पूर्व सूचना है।
    20. अपव्यय की ओर दृष्टि न होने से आज धन की अधिक आवश्यकता हो रही है।
    21. वस्तुओं के मूल्य की बात नहीं चैतन्य का मूल्य करना चाहिए। जहाँ अन्य वस्तुओं का मूल्य है वहाँ भोग भूमि होगी, कर्मभूमि नहीं।
    22. दुनिया की सम्पदा से हमारा जो नहीं होने वाला है ऐसा अमूल्य पदार्थ जीव हमें मिला है।
    23. धन संग्रह करोगे तो संग्रहणी की बीमारी होगी।
    24. धन सात्विक होगा तो बढ़ता जायेगा।
    25. हम पहले लक्ष्य बनायें फिर जीवन की कुछ कड़ियों में अर्थ की व्यवस्था आवश्यक होती है। अर्थ पुरुषार्थ मूलक होता है।
    26. दो अर्थों के बीच वह पुरुष (आत्मा) है। आत्मा को प्राप्त करना चाहते हो तो अर्थ की कुछ आवश्यकता है किन्तु जो अर्थ की ओर ही जाता है उसका पुरुष (आत्मा) गोल हो जाता है।

    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...