संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के द्वारा दी गई विभिन्न परिभाषा का संकलन
- विवेक के साथ प्रत्येक घड़ी बिताने का नाम ही वास्तव में जीवन है।
- यदि कोई व्यक्ति विवेक से ही हाथ धो बैठता है, तो उसका जीना जीना नहीं बल्कि चलते फिरते शव के समान है उसका जीवन जीना।
- विचार विवेक ही आत्मा के महान् प्राण माने गये हैं वह उज्ज्वल और अखण्ड रूप में सदा विद्यमान रहते हैं इन्हीं के माध्यम से इनका आगे का विकास होता है और ये प्राण कभी भी भौतिक प्रभाव में नहीं आने वाले।
- संसार में कर्तृत्व बुद्धि, भोकृत्व बुद्धि और स्वामित्व बुद्धि इन तीन प्रकार की बुद्धियों के द्वारा ही संसारी प्राणी की बुद्धि समाप्त हो गई है। वह बुद्धिमान् होकर भी बुद्ध जैसा व्यवहार कर रहा है।
- जीवन का इतिहास आदर्श प्रस्तुत करने वाला होना चाहिए।
- बुराई देखें अपनी और अच्छाई देखें सबकी, आदर्श प्रस्तुत करने की यही अच्छी विधा है।
- शिक्षा जीवन चलाने के लिए नहीं, किन्तु वह जीवन का विकास करने उसे सुधारने के लिए ही साधन है।
- हम काँटों पर चलना सीखें यानि कठिनाइयों से गुजरना सीखें उनसे घबराए नहीं और फूलों से बचें, यानि भोग विलासिता से अपने को दूर रखें, जीवन हमारा महक जायेगा हम धन्य हो जायेंगे।
- जीवन में आनंद के अनुभव के लिए श्रेणी चढ़ो। एक-एक कक्षा पार करो। कक्षा तो बढ़ती जाती है लेकिन समझदारी नहीं आती तो आनंद कैसे आये?
- शरीर के प्रति निरीहता नहीं है तो आनंद का अनुभव नहीं होता।
- यदि जीवन अच्छा ही चाहते हो तो कठिनाइयों से कभी डरो नहीं और डरने से कभी भी कठिनाई छूटती नहीं। नहीं समझे। अब शेष जीवन कितना है? कुछ पता तो है नहीं इसलिए करते जाओ।
- आप लोग कहते हैं जल ही जीवन है। ठीक वैसे ही समय ही जीवन है। समय बचाओ। समय मिला है तो अरिहंत सिद्ध, अरिहंत सिद्ध करते जाओ।
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव