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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पाप-पुण्य

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    पाप-पुण्य  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. प्राय: पुण्य का उदय आने पर मुख कमल खिल जाता है और जब असाता का उदय आता है, तब जैसे सूर्य का उदय न होने पर कमल मुरझा जाता है इसी प्रकार मुख मुरझा जाता है। दरिद्र हो जाता है। वह भूल जाता है कि उषा काल के पीछे अंधेरी शाम भी आयेगी।
    2. संसार में कहीं दु:ख नहीं है, दु:ख तो अपने अंदर है, हमें दु:ख का अनुभव कर्म के उदय में होता है उनको कर्मों को जब तक हम साफ नहीं करेंगे तब तक सुख हम लोगों को उपलब्ध नहीं होगा।
    3. पापी की यदि उन्नति करना चाहते हो तो पापों को उखेड़ दो, पापों को तिरस्कृत कर दो।
    4. करने योग्य कार्य को जब तक नहीं करता है तब तक अयोग्य ही कहलायेगा।
    5. पुण्य में कमी आये और पापों में अधिकता हो ऐसे कार्य न करें इस प्रकार की जाग्रति हमेशा रखनी चाहिए।
    6. जैसे साइकिल में हवा भरने में तो बहुत देर लगती है लेकिन पंक्चर होने में, हवा निकलने में टाइम नहीं लगता है। उसी प्रकार पाप की उदीरणा में टाइम बहुत कम लगता है पुण्य करने में टाइम लगता है।
    7. पुण्य करना चाहते हो तो इसी ढंग से करो की मोक्षमार्ग सम्बन्धी ही सामग्री मिले। संसार बढ़ाने वाली वस्तुओं की माँग न करें।
    8. आज पाप का प्रक्षालन तो नहीं पाद प्रक्षालन हो रहा है।
    9. जो जिस वस्तु के प्रति आकृष्ट होता है वह उसे कभी नहीं मिलती। पुण्य से निरीह रहोगे तो अनंत सम्पत्ति आयेगी पर यदि उस संपत्ति का उपभोग करोगे तो वह पुण्य पाप में बदल जायेगा।
    10. जिसमें निरीहता होती है उसमें निर्भीकता अपने आप आ जाती है।
    11. पुण्यबंध तो फिर भी सरल है, पर पुण्य के उदय में उसका सदुपयोग करना बहुत कठिन है।
    12. अभी पुण्य तेज है तो दुर्लभता के बारे में सोच लेना चाहिए।
    13. संतोष धारण करने से अनंत पाप कम हो जाते हैं। संतोष गृहस्थों का एक महान् गुण है। परिग्रह को ब्रेक लगाना चाहते हो तो स्वदार संतोष व्रत धारण करो। विदेशों में विडम्बना हो रही है वहाँ कोई व्रत नहीं है।
    14. पाप के डर से मर्यादा में रहना चाहिए, किसी के अनुशासन से नहीं।
    15. अभिमान से पुण्य भी पतला होने लगता है। जैसे पवित्र प्रासुक भोजन भी क्रोध में जहर बन जाता है।
    16. पुण्य के द्वारा ही पाप छोड़ा जाता है, पुण्य को छोड़ने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। पाप-पुण्य दोनों एक साथ नहीं छोड़े जा सकते। पुण्य है ही नहीं तो क्या छोड़ोगे बताओ? पाप छूटने पर पुण्य आता है।
    17. भोजन सामग्री भोगते हैं तो पाप बंध होता है और उसे पूजन में लगाते हैं तो मंगल द्रव्य बन जाती है और पाप को नष्ट कर पुण्य बढ़ता है यही बनियावृत्ति है। लाभ-हानि समझे बिना दुकान कैसे चलाओगे?
    18. जिनके चरणों में पाप नहीं पलता उनके चरणों की पूजा से हमारा पाप कटता है।
    19. जो पाप में लीन रहता है वह अपने आप में लीन नहीं हो सकता।
    20. यदि सभी पाप से डरने लगें तो स्वर्ग यही आ जावेगा।
    21. यदि शत्रु से बचना चाहते हो तो पाँच पापों से बचो।
    22. जो आत्मा को पवित्र कर दे वह पुण्य और जो आत्मा को शुभ से बचाता है वह पाप है।
    23. जब तक हम पुण्य का आस्रव नहीं करेंगे, तब तक यथाख्यात चारित्र को प्राप्त नहीं कर पायेंगे।
    24. पुण्य के कारण भूल भुलैया नहीं है भावों के कारण भूल भुलैया है।
    25. जो व्यक्ति देव पूजा को केवल बंध का कारण मानता है, वह घोर अंधकार में है और ऐसा उपदेश दूसरे को दे रहा है वह वज़मय पाप की लकीर खींच रहा है।
    26. पाँच पाप ही दु:ख हैं, अन्य कोई दु:ख नहीं हो सकता है।
    27. जो व्यक्ति दु:खी होता है वह साता का बंध नहीं कर सकता है।

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