निश्चय-व्यवहार विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- आध्यात्मिक जीवन की ओर निरंतर अग्रसर होने के लिए अनासक्त भाव ही आधार हैं/स्तंभ हैं क्योंकि सांसारिक प्राणी मूर्च्छा के भंवर में पड़कर अपना बहुमूल्य जीवन व्यर्थ ही गवा देता है। अत: यह आवश्यक है कि आपके पास कितना ही वैभव एवं सम्पन्नता रहे आप उस सबसे अपनी मूर्च्छा अपने मोह भाव त्यागें और आकिंचन्य की ओर पग बढ़ायें।
- भले ही हम अनेकान्तवाद के उपासक हैं लेकिन ये एकान्त है कि एकांत में ही अकेले की मुक्ति होगी वहाँ अनेकान्त नहीं रहेगा वहाँ भी अपने को अपने आप ही का अनुभव करना पड़ेगा तनिक भी किसी दूसरे का अनुभव नहीं होगा।
- निश्चयनय ढाल है, आत्मा की सुरक्षा करता है और व्यवहारनय तलवार है जो दूसरों को फेंकता है।
- व्यवहारनय का अर्थ है-विश्व कल्याण। निश्चयनय का अर्थ है-आत्म कल्याण।
- यदि व्यवहारनय को नहीं मानोगे तो तीर्थ का उच्छेद हो जायेगा और निश्चयनय को नहीं मानोगे तो आत्मा का कल्याण नहीं हो सकेगा।