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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • नेता

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    नेता विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. जो सही दिशा की ओर स्वयं चले और पीछे वालों को सहायक बने और पीछे मुड़कर नहीं देखता वह सही नेता है।
    2. महावीर भगवान स्वयं ही निकले थे स्वयं के नेता स्वयं थे।
    3. अपने को बनती कोशिश विचारों का स्थितीकरण करना आवश्यक है। वैचारिक स्थितीकरण करने का नाम नेतृत्व है। वैचारिक उपगूहन, वात्सल्य जो कर सके उसके पास नेतृत्व की क्षमता मानी जाती है। मुझे आवश्यक्ता है ऐसे नेता की। लेकिन अपनी तरफ से नेतृत्व चाहना नेतृत्व के गुण नहीं हैं।
    4. जिसके पास नेतृत्व है वह कर्तव्य की ओर देखता है नेतृत्व की ओर नहीं।
    5. नेतृत्व लिया नहीं जाता, नेतृत्व दिया जाता है। दिये जाने के बाद भी सामने वाला कहता है मेरे में कहाँ ऐसी क्षमता? आपको अगर क्षमता दिख रही है तो आप जाने, बाकी मैं अपने को इस योग्य नहीं समझता। ऐसी लघुता वाला ही नेतृत्व के योग्य होता है।
    6. जो स्वयं नेतृत्व में रह सकता है, रहता है वही नेतृत्व के योग्य हो सकता है। जो स्वयं नेतृत्व में नहीं वह स्वयं नेतृत्व सम्हाल नहीं सकता।
    7. गुणों की ओर जिसकी दृष्टि है उसके नेतृत्व को सम्भाला तो वश की बात है, लेकिन जिसकी अवगुणों की ओर दृष्टि है उसके नेतृत्व को सम्भालना बहुत कठिन कार्य है।
    8. जो न अपने मित्र पर, न अपने बन्धुओं पर, न अपने परिवार और न ही अपने मन पर विश्वास रखे वह राजा कहलाता है।
    9. जो राजा होता है धर्म ध्यान कम कर पाता है, पर वह धर्म ध्यान करने में सहयोगी होता है।
    10. सिंहासन बैठने के लिए नहीं सिंह की तरह चारों दिशाओं में अवलोकन और एक ही दहाड़ में ही सबको दुरुस्त कर देने के लिए है। कहाँ है ऐसा सिंह/नेता?
    11. अखबार में खबर छाप कर स्वयं बेखबर ही रहे यह ठीक नहीं है। सब लाभ पायें ये अच्छा है लेकिन स्वयं भी लाभ लेने का यतन करें।
    12. आज एक दूसरे की रक्षा करने के लिए कोई तैयार नहीं। जो रक्षा के लिए नियुक्त किये गये,वही भक्षक बनते चले जा रहे हैं।
    13. शाकाहार, धर्म-प्रभावना, संस्कृति का संरक्षण आदि करना चाहते हो तो मतदान का सही जगह, सही समय पर उपयोग करें।
    14. सही नेता वही है जो धर्म की रक्षा करे, स्वयं बना रहे धर्मात्मा और अन्य का भी सहयोग कर सके।
    15. हम डायरेक्ट सीनियर होना चाहते हैं। तब जूनियर कौन बनेगा? किन्तु यह एक सिद्धान्त है कि किसी भी क्षेत्र में डायरेक्ट हम सीनियर नहीं हो सकते। योग्यता के अनुसार हो सकते हैं।
    16. सिंहासन खाली पड़ जाये इसकी कोई चिंता नहीं, लेकिन सिंहासन पर कोई गलत व्यक्तित्व न चला (बैठ) जाये, इसकी चिंता रखनी चाहिए, राजा-महाराजा को। तभी जनता का संरक्षण संभव है।
    17. पीछे चलने वाला ये सोचे कि आगे वाला उसके अनुसार चले तो यह गलत है। पीछे वाले को ही आगे बढ़कर आगे वाले के अनुसार चलना पड़ेगा।
    18. लोकतंत्र जीवित तभी रहेगा जब विवेक के साथ नेतृत्व करने वाले को चुना जायेगा।
    19. नेतृत्व करने वाला अधर्मी, अदयालु हो तो धर्म भी समाप्त हो जायेगा।
    20. पिता का निधन तभी से जानो जब सात्विक धन समाप्त हो जाये।

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