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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मोक्षमार्ग

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    मोक्षमार्ग  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. पैर पड़ रहे हैं वह मोक्षमार्ग नहीं है जो पैरों को एक एक अन्तर पूर्वक सावधानी से रख रहा है वह मोक्षमार्ग है उसकी ईर्यापथ शुद्धि चल रही है। मन में कोमलता के साथ जो प्रवृत्ति चल रही है वही मूलत: मोक्षमार्ग है। कोई काँटों को बचा रहा है कोई जीव को बचा रहा है काँटे को बचाने का अर्थ है अपने पैरों को बचा रहा है जो काँटे को बचा रहा है वह परीषह से डर रहा है इसलिए मोक्षमार्ग बाहर नहीं भीतर है।
    2. भगवान् को देखकर नकल करना है मोक्षमार्ग में दुनिया में बहुत सारी परीक्षाएँ होती हैं, उसमें हम अध्ययन करके पास होते हैं, वहाँ नकल नहीं करने देते, लेकिन हमारे ही भगवान् तो कहते हैं कि मोक्षमार्ग में नकल करके पास हो जाओ। कोई कागज पेन की आवश्यकता नहीं सौ में से सौ नंबर प्राप्त करो नकल करके।
    3. मोक्षमार्ग में इधर-उधर की बातें नहीं, आत्मा की बातें, आत्मा का हित पूछा जाता है।
    4. मोक्षमार्ग बहुत सरल मार्ग है बस वैराग्य दृढ़ होना चाहिए समता और सहनशीलता होना चाहिए।
    5. आकुलता नहीं करना यही मोक्षमार्ग है। जिसका संवेग, वैराग्य दृढ़ है उसे कुछ भी नहीं लगता है सब बातें गौण करके शांत बैठ जाना है जिसके पास वैरागय की कमी है उसे आकुलता सताती है।
    6. अनुकूलता मिलने के उपरांत फूलना नहीं, प्रतिकूलता में उदासीन नहीं होना ये है मोक्षमार्ग। प्रतिकूलता-अनुकूलता से गुजरता हुआ मोक्षमार्ग है। वही मोक्ष में पहुँचता है जो इस पर चलता है।
    7. प्रभु ने कहा है-मोक्षमार्ग में समान रूप से सहन किया जाता है तभी मुक्ति मिलती है।
    8. जो परीषहों और उपसर्गों से जूझता है उसके लिए मोक्षमार्ग है इसलिए तो फिर परीषहों और आप लोगों को उपसर्गों का खड़े होकर स्वागत करना चाहिए। आस्था और संयम की कृपा से मंजिल पाते हैं।
    9. स्वयं को लघु समझने वाला ही बड़ों का गुणानुवाद कर सकता है। भक्ति करके गुणानुवाद करके उसी रूप बनना चाहता है यही एक मात्र मोक्षमार्ग है।
    10. विकल्प को छोड़ने की साधना ही मोक्षमार्ग की साधना है। विकल्प संसार जाल में फंसाने वाले हैं। विकल्प भारी शरीर की तरह है जो हमेशा पराधीन हो जाता है।
    11. अपमान का अर्थ है अपना नहीं, अपनी मान कषाय का अपमान हो रहा है, इसे सहना भी महान् तपस्या है। मान का ही अपमान हो रहा है और मान का ही सम्मान होता है न अपना अपमान होता है न सम्मान होता है अपना तो ज्ञातादृष्टा आतमराम है। जिसको यह समझना आ गया तो समझो मोक्षमार्ग आ गया।
    12. पंचेन्द्रिय एवं मन के विषयों का नाम संसार है तथा इन दोनों से ऊपर उठने का नाम ही मोक्षमार्ग है। मोक्षमार्ग में इन विषयों की उपेक्षा करना है।
    13. जो व्यक्ति पंचेन्द्रिय विषयों को नहीं छोड़ सकता वह मोक्षमार्ग पर कदम भी नहीं बढ़ा सकता।
    14. विषयों का आदर होगा तो मोक्षमार्ग का निश्चित अनादर होगा।
    15. मोक्षमार्ग को खरीदा नहीं जा सकता, साधा जा सकता है लेकिन साधने के लिए श्रद्धान की बड़ी आवश्यकता होती है।
    16. प्राथमिक दशा में मोक्षमार्ग बाहर कम भीतर अधिक है। सम्पन्न दशा में बाहर मोक्षमार्ग है ही नहीं।
    17. मोक्षमार्ग स्व व्यवस्थित व्यवस्था है पर की अपेक्षा रहित।
    18. मोक्षमार्ग में थ्योरी कम है प्रेक्टिकल अधिक है।
    19. ज्ञान की नहीं, निष्ठा और विशुद्धि की आवश्यकता है मोक्षमार्ग में।
    20. मोक्षमार्ग में आत्म संतुष्टि ही मुख्य मानी जाती है यही प्रयोजन रखना चाहिए व्रत स्वयं के लिए लिए हैं दूसरे को संतुष्ट करने के लिए नहीं लिए।
    21. जो संकल्प लिया है उसी पर समर्पित होना अन्य की ओर दृष्टि नहीं रखना मोक्षमार्ग में आत्म विश्वास ही काम करता है।
    22. प्रशासन नहीं आत्मानुशासन की बात होती है मोक्षमार्ग में।
    23. यदि परीषह और उपसर्ग नहीं आ रहे हैं तो समझना मोक्षमार्ग में अभी कमी है।
    24. अपने शरीर के माध्यम से जो बिना बोले मोक्षमार्ग का कथन कर रहें हैं ऐसे वीतरागी मुनिराज होते हैं।
    25. मोक्षमार्ग में तत्व श्रद्धान के बल पर ही आगे बढ़ सकते हैं। मोक्षमार्ग में पुण्यबंध तब तक काम का नहीं जब तक श्रद्धान नहीं।
    26. मोक्षमार्गी अपने दोषों को पहले नोट करता है फिर स्वयं ही उनके भगाने के लिए चौकीदारी करता है।
    27. मोक्षमार्ग में सावधान का अर्थ है सार और असार का ज्ञान होना, किन्तु संसारी प्राणी सावधान है संसारमार्ग में। संसार महत्वपूर्ण नहीं किन्तु संसार में रहकर सावधानी महत्वपूर्ण हैं।
    28. मोक्षमार्ग विवेक के साथ ही प्रारम्भ होता है। संसारी प्राणी को भले ही दिव्य ज्ञान नहीं है परन्तु उसके पास विवेक है उसे रखना चाहिए उसी विवेक से दिव्यज्ञान की प्राप्ति होगी।
    29. रत्नत्रय की उन्नति सौ ज्ञान का विकास है वही आत्मा का विकास है।
    30. पथ एक है मार्ग एक ही है जो सामने चलता है वह मुक्ति का पथ चाहता है और जो रिवर्स में चलता है वह संसार का पथ चाहता है।
    31. मार्ग पर चलते समय यदि कोई बोलने वाला साथी मिल जाता है तो मार्ग तय करना सरल हो जाता है। गुरु निग्रंथ साधु हमारे मोक्षमार्ग के बोलने के साथी हैं। इनके साथ चलने से हमारा मोक्षमार्ग सरल हो जाता है।
    32. मोक्षमार्ग में गुरु ही सहायक सिद्ध होते हैं।
    33. गुरु हमारे लिए अदृश्य प्रभु तक पहुँचाने के लिए मार्ग दर्शाते हैं।
    34. मोक्षमार्ग में प्रत्येक क्रिया दूसरे के लिए नहीं अपने लिए की जाती है।
    35. आत्मसाधना करते हुए मोक्षमार्ग पर जिन्होंने अपने कदम बढ़ाए हैं, वह संतुष्ट प्रमुदित और अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं।
    36. रत्नत्रय वह अमूल्य निधि है जिसकी तुलना संसार की समस्त सम्पदा से भी नहीं की जा सकती। 
    37. मोह को समाप्त करना ही मोक्षमार्ग है।
    38. मोक्षमार्ग बहुत सुकुमार है और बहुत कठिन भी। मोक्षमार्ग अपने लिए कठोर और दूसरों के लिए सुकुमार होना चाहिए।
    39. कषायों की वजह से हम दूसरों को मोक्षमार्ग कठोर बना देते हैं और अपने लिए नरम बना लेना चाहते हैं लेकिन मोक्षमार्ग तो मोक्षमार्ग है आप की इच्छा के अनुसार नहीं बनने वाला।
    40. मोक्षमार्ग में कोई मिल करके नहीं जाता है। मिलन सारे के सारे छूट जाते हैं उसी का नाम मोक्षमार्ग है।
    41. एक बार जो सोच समझकर मोक्षमार्ग में कदम रखते हैं उन्हें दूसरों के संकेत की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
    42. मोक्षमार्ग में लाड़ प्यार नहीं होता तो क्रोध भी नहीं होता।
    43. राग के द्वारा संसार के बन्धन का विकास होता है तो वीतराग भावों के द्वारा संसार से मुक्त होने के मार्ग का विकास होता है।
    44. मोक्षमार्ग में बिल पावर तब काम करता है जब सेल्फ कॉन्फीडेंस हो।
    45. मोक्षमार्ग में युक्ति बहुत अच्छा काम करती है लेकिन वह युक्ति तर्क के साथ नहीं चलती है बल्कि वह युक्ति सम्यग्ज्ञान के साथ चलती है।
    46. जो अपनी आत्मा की निंदा करता है, गर्हा करता है, आलोचना करता है, अपने आपको धिक्कारता है यही मोक्षमार्ग में कार्य कारी है।
    47. जो गुणवान है उनका गुणगान करता है, उनकी सेवा करता है, सत्कार करता है, उनका कीर्तन करता है और उनको धन्यवाद देता है कि आपके गुण हमारी दृष्टि में आ गये यह बड़ा सौभाग्य का उदय है। इस प्रकार कह करके वह मन और इन्द्रियों को जीत लेता है।
    48. दु:ख का विचार करो, पर सुख के मार्ग को मत छोड़ो। कंकड़ के साथ गेहूँ को भी मत फेंको, वरना रोटी नहीं मिलेगी।
    49. ऊँचे सिंहासन पर बैठने में पूज्यता प्राप्त नहीं होती बल्कि पूज्यता पवित्रता पावनता मात्र गुणों के विकास में, रत्नत्रय को धारण करने में है।
    50. विद्यार्थी, समय का सदुपयोग करते हुए समीचीन पथ पर आरूढ़ होकर स्व पर कल्याण की ओर अग्रसर हो। जवानी के जोश को होश के साथ काम में ले।
    51. जिस प्रकार कठिन प्रश्न होने पर ही विद्यार्थियों की कुशलता मानी जाती है, उसी प्रकार रास्ता कठिन ही होना चाहिए। मोक्षमार्ग कहता है कि जो पास है, उसका नाश हो, ह्रास हो और जो पास नहीं है, उसका विकास हो।
    52. मोक्षमार्ग की शिक्षा चाहते हो तो पहले संयमाचरण सम्यक्त्वाचरण चारित्र की दीक्षा लो तब शिक्षा मिलेगी।
    53. जब मटकी या नारियल बजा-बजा कर लेते हैं तो मोक्षमार्ग भी बजा-बजा कर लेना। टटोलो, परीक्षा करो फिर लेओ। आज तक दूसरों को टटोला, खुद को नहीं।
    54. जिनवाणी की आज्ञा और गुरु की आज्ञा को मानकर चलना ही सही मोक्षमार्ग है।
    55. रूढ़िवाद एक ऐसा जहर है जो मोक्षमार्ग रूपी अमृत में भी जहर फैला देता है।
    56. इस संसार से जाते वक्त दिगम्बर ही जाते हैं, घर वाले सब छीन लेते हैं। आप स्वयं जीवन में अगर दिगम्बर नहीं बनोगे तो अन्त में बना दिए जाओगे।
    57. रत्नत्रय ही हमारी अमूल्य निधि है। इसे ही बचाना है। इसको लूटने के लिए कर्म चोर सर्वत्र घूम रहे हैं। जाग जाओ, सो जाओगे तो तुम्हारी निधि ही लुट जायेगी।
    58. सम्यक दर्शन से जिसने अपने आप को शुद्ध बनाया है वह संसार शरीर भोग से निवृत्त है तभी मोक्ष की सीढ़ी है अन्यथा मोह की।
    59. मोक्षमार्ग पर सब एक साथ चलते हैं ये व्यवहार से है निश्चय से तो अकेला ही चलता है।
    60. मोक्षमार्गी को अप्रशस्त प्रकृतियों को संवर और निर्जरा के रूप में परिवर्तित करना होता है फिर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना।
    61. इस धरती पर आज तक मोक्षमार्ग का प्रवाह रुका नहीं यह भी अनादि अनिधन प्रवाह है।
    62. मोक्षमार्ग परीषह और उपसर्ग के बिना बनता ही नहीं।
    63. मार्ग में कठिनाइयाँ भी होती हैं पर उसको याद नहीं रखना चाहिए ये तो होता ही रहता है।
    64. कठिनाइयों को पार करते चलो कठिनाइयाँ बाहर से नहीं आती हैं, कठिनाई न तो महाराष्ट्र में है, न कर्नाटक में, कठिनाई तो हमने अपने कर्म से बांधी हैं।
    65. कष्ट बाहर से नहीं आते ये कष्ट हमें शिष्टता और परिशिष्टता बताते हैं और सहने पर मिष्टता अपने आप आ जाती है।
    66. मोक्षमार्ग में दायित्व का निर्वाह स्वयं को करना होता है।
    67. तीर्थंकर भगवन्तों ने कठिन से कठिनतम मार्ग अपनाया, साधना की। अपने को तो कितना सरल बताया है।
    68. अपने ही परिणाम अपने लिए घातक हैं ये सिद्धान्त जिसके पास नहीं वह व्यक्ति मोक्षमार्ग में एक कदम भी नहीं रह सकता। ये पक्की बात है।
    69. रत्नत्रय लुट गया तो सब गया, अब कुछ भी नहीं बचा।
    70. ये मोक्षमार्ग है यहाँ हम अकेले नहीं चल रहे हैं समझे आप जाइये लेकिन एरो तीर के निशान को कम से कम बना के जाओ ताकि पीछे वाले भी पार कर सकें ये उपकार अनुकंपा के भाव वे भी कर सके।
    71. वो कौन हैं क्या पता? कोई मेरे वैरी हुए तो? अरे मोक्षमार्ग में कोई वैरी नहीं होता सब साथी हैं सब साथ हैं क्या समझे? सम्यक दृष्टि के भाव होना चाहिए यदि ये नहीं होता तो उसकी विशालता में अभी बहुत कमी है।
    72. जैसे विद्यार्थी कई हो सकते हैं, वे अपने को ही देख सकते लेकिन क्लास टीचर तो एक ही है ना, उनको तो पूरी-पूरी क्लास की ओर देखना चाहिए। क्लास यानि समूह है तो आप समूह को संबोधित करने जा रहे हो तो पूरे को ही संबोधित करो, लेकिन जो मोड़ पर हैं उनको पहले ले लो।
    73. संकीर्ण बुद्धि मोक्षमार्ग में किसी काम की नहीं। जो काम की नहीं उसे फेंक दो।
    74. मोह का इतना जबर्दस्त प्रभाव है कि मोक्ष जाने वालो को भी गाफिल बना देता है। उन्मार्ग पर चल रही है परिस्थति-मोह। सन्मार्ग पर चल रही है परिस्थति–निर्मोह।
    75. पंचमकाल में सही रास्ता बताने वाले जुगनू की तरह होते हैं।
    76. सही पुष्टि संतुष्टि तो उसे ही होती है जो आत्मा को मोक्षमार्ग में लगाता है।
    77. मोक्षमार्ग में हमेशा-हमेशा उत्साह युक्त होना चाहिए। वीतराग मार्ग है उसकी प्रभावना में हमेशा-हमेशा तैयार रहना उसमें प्रमाद नहीं करना।
    78. एक माँ जिस प्रकार २४ घंटे परिवार की रक्षा में तैयार रहती है उसी प्रकार सम्यक दृष्टि भी अपने रत्नत्रय के माध्यम से २४ घंटा उत्साही रहे तैयार रहे।
    79. अपने मन की चंचलता को ठण्डे बस्ते में रखना ही मोक्षमार्ग है मन को वश में रखने वाला पुरुषार्थी होता है।
    80. दूसरे को दोष देना नहीं। यह हमारे कर्म का उदय है यह नहीं सोचेंगे तो मोक्षमार्गी नहीं बन सकते।
    81. हमारे कर्म का उदय है ऐसा सोचने वाला मुमुक्षु है।

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