मोक्षमार्ग, तप विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- मोक्षमार्ग में उन्हीं से मोह रखो जो गुणों में श्रेष्ठ हों।
- जब तक श्रावक अवस्था में हो तब तक इस बात पर विश्वास तो रखो कि जब कभी भी मोक्षमार्ग मिलेगा उस समय आपको अकेले ही होना पड़ेगा।
- जिस प्रकार आप लोग कोई भी हार आभूषण पहन लेते हैं तो उसकी सुरक्षा के साथ चलते हैं। उसी प्रकार रत्नत्रय का हार पहनने वाला व्यक्ति इस प्रकार की सुरक्षा के साथ चलता है।
- मोक्षमार्ग बहुत सरल मार्ग है बस वैराग्य दृढ़ होना चाहिए और समता, सहनशीलता होना चाहिए।
- मोक्षमार्ग टेढ़ा नहीं है। मार्ग हमेशा सीधा ही रहता है। रास्ता सीधा ही होता है, लेकिन चलने वाला सीधा नहीं हो पाता।
- आशा का विसर्जन हो इतना सरल मोक्षमार्ग है। लेकिन मोह के कारण वह विष की भाँति कठिन है।
- समयसार क्या है? समय माने आत्मा और सार माने रत्नत्रय। अर्थात् रत्नत्रय समन्वित आत्मा ही वास्तविक समयसार है।
- उत्तम क्षमा वृतिपरिसंख्यान तप द्वारा ही चरमसीमा को उपलब्ध होती है।
- वृतिपरिसंख्यान तप में भोजन मिले अथवा न मिले किन्तु गालियों का पेय तो मिलता ही है आ गया नंगा इत्यादि साधु उन गालियों को सान्त्वना पूर्वक स्वीकार कर अनेक कर्मों की निर्जरा कर डालता है।
- वास्तविक रस परित्याग तप उस समय हैं जब रसों में रस ही न आये।
- कायक्लेश तप ओवरड्यूटी की तरह है। ओवरड्यूटी करने में आनंद आता है क्योंकि अधिक लाभ की आशा है वहाँ इसी प्रकार समयसार को भी इस तप में आनंद का अनुभव होता है क्योंकि समय से पूर्व ही अनेक कर्मों को जाना पड़ता है आत्मा को छोड़कर।
- मोक्षमार्ग में कहा है-कषाय से बचो भगवान् को देखो।
- मोक्षमार्ग में अधिक पढ़ाई की आवश्यकता नहीं है भेदविज्ञान की आवश्यकता है। यदि भेदविज्ञान के रहस्य को अच्छे से समझता है तो वह मोक्षमार्ग में अच्छे से आगे बढ़ गया।
- मोक्षमार्ग में अंजनचोर जैसी दृढ़ता की आवश्यकता है।
- जिन्होंने इन्द्रियों का निग्रह नहीं किया और रत्नत्रय की बात करता है तो वो व्यक्ति ऐसा है जैसे अपने माथे से पर्वत को फोड़ने की बात करता है वो कुछ भी नहीं कर पाता है।