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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मान/ परिणाम

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    मान/ परिणाम विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. भावों में मलिनता का कारण शरीर के प्रति बहुत आसक्त होना ही है।
    2. अवसर्पिणी काल में युग को ढलान में ही जाना है, ह्रास की ओर ही जाना है इसलिए भावों में निर्मलता बनाये रखो।
    3. पैसा हर जगह महत्वपूर्ण नहीं है यदि भावपूर्वक भगवान् को ज्वार चढ़ाई जाती है तो वह भी किसी सेठ के मोती चढ़ाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
    4. वर्तमान में हम कोई बड़ी साधना नहीं कर सकते किन्तु भावों की विशुद्धि तो रख सकते हो। अत: कहीं भी रहो धर्ममय एवं विशुद्ध भावों को तो बनाये रखो।
    5. आचार्य कहते हैं - वर्तमान में बड़ी-बड़ी साधना नहीं कर सकते कोई बात नहीं किन्तु भावों की विशुद्धि तो रख सकते हो।
    6. धर्ममय विशुद्ध भावों से कर्मों की असंख्यात गुणी निर्जरा होती है अत: वर्तमान में इसी पुरुषार्थ को करते रहें लेकिन इसमें भी अभिमान न रखें।
    7. हमारे लिए बुरे परिणाम घातक होते हैं इसलिए हमें अपने बुरे परिणामों को सुधार लेना चाहिए।
    8. भावों के फल सरस और नीरस होते हैं।
    9. जो व्यक्ति स्वर्ग की कामना नहीं करता वह नरक से नहीं डरता, नरक भेजने वाले भावों से डरता है।
    10. जब प्रतिकूल दशा आ जाती है तो उस समय अपने भावों को सुरक्षित रखने वाला महान् साधक माना जाता है।
    11. वस्तु का नाम सुख-दु:ख नहीं है किन्तु हमारे मन में जो परिणाम है उसका नाम सुख-दु:ख है।
    12. हम तत्वज्ञान के माध्यम से इस अनंत संसार को अंतर्मुहूर्त में चुल्लू भर कर सकते हैं ऐसे परिणामों के खेल हैं लेकिन आज परिणामों के खेल कषायों के द्वारा तो हो रहे हैं लेकिन तत्वाभिमुख माध्यम से परिणामों के खेल नहीं हो पाते हैं।
    13. चेतन का उत्थान भावों की सीढ़ियों पर चढ़ने से ही ज्ञात होता है।
    14. जैसे योग्य खाद और पानी देना भी पौधे के लिए अनिवार्य है अकेले सहारे या बंधन से काम नहीं चलेगा, वैसे ही संयम के साथ शुद्ध भाव करना भी अनिवार्य है।
    15. देह सूख जाये तो सूखने दो, पर आप तो ताजा बनो, भाव निक्षेप से जैन बनो।
    16. त्याग, तपस्या, ज्ञान मद आदि के कारण छूने लायक नहीं रहते, संकरे हो जाते हैं, रत्नत्रय को इन आठ मदों से बचायें फिर उसकी सुगंध पाने सभी आवेंगे। दुर्लभ रत्नत्रय है ख्याति, लाभ, पूजादि नहीं।
    17. यदि ज्ञान ही मद का कारण बने तो फिर और कौन साधन है जो मद को मिटा सके? ज्ञान का सदुपयोग न करने से मद उत्पन्न होता है।
    18. मद विवेक का गला घोंट देता है।
    19. मद न करते हुए जीवन को व्यतीत करना महापुरुषों का, वीरों का काम है।
    20. हमें दुनिया को नहीं जीतना, अपने द्वारा पाले गये मद को जीतना है।
    21. मान के दास होना सबसे बड़ी कमजोरी है। वर्धमान ने मन को जीता है इसलिए वर्धमान नाम है।
    22. मान की भूख को छोड़ना महान् व्रत है।
    23. मदों के कारण आत्म धर्म ही समाप्त हो जाता है।
    24. जाति मद के कारण उपगृहन, वात्सल्य, निर्विचिकित्सा, स्थितिकरण सभी भाव समाप्त हो जाते हैं।
    25. जिसके पास मद आ जाता है उसका दम निकल जाता है। मद आने पर व्यक्ति झुक नहीं सकता चाहे सब कुछ लुट जावे।
    26. जब मान जागृत होता है तो क्रोध की अग्नि भड़कने में देर नहीं लगती।
    27. जो मान को जीतने का पुरुषार्थ करता है वहीं मार्दव धर्म को अपने भीतर प्रकट करने में समर्थ होता है।
    28. मान कषाय का विमोचन करके ही हम अपने सही स्वस्थ का अनुभव कर सकते हैं, साम्य भाव ला सकते हैं।
    29. जिस प्रकार टाइफाइड के उपरांत भूख खुलती है धीरे-धीरे उसी प्रकार ख्याति, पूजा, लाभ की चाह की भूख प्राय: करके सब लोगों की खुलती है।
    30. यदि ख्याति चाहते हो तो मुक्ति नहीं चाहते हो।
    31. ख्याति के द्वारा मुक्ति मिलती हो तो चाहो, अन्यथा क्यों?
    32. ये विश्वास है कि मुक्ति रत्नत्रय के द्वारा मिलती है तो ख्याति की खाई क्यों बीच में आती है? यूँ कहना चाहिए खाई बीच में रखी है तो मुक्ति उस ओर है ये निश्चित है, खाई को पार किये बिना मुक्ति नहीं मिलती।
    33. ख्याति की खाई को पूर दो, पहले फिर तो मुक्ति के द्वार पर खड़े हैं।
    34. मद हो जाता है तो अंधा हो जाता है और यदि मद नहीं है तो अंधा भी ज्ञानी हो जाता है।
    35. मान को बाँध करके रखने का जिसने प्रयत्न नहीं किया समझ लो मोक्षमार्ग में वह कभी भी आगे कदम उठा ही नहीं सकता।
    36. मान की निर्जरा माँ की बहुत अच्छी होती है नटखट बच्चों के माध्यम से इससे बढ़कर करके और कोई है ही नहीं।
    37. मानव ही महात्मा तथा महामानव बनने की पात्रता रखता है। मान मिटते ही मानव महात्मा बन जाता है।
    38. पाँचों इन्द्रियों भिन्न-भिन्न विषय हैं यह मान प्रतिष्ठा कौन-सी इन्द्रिय का विषय है? खुराक है? एक मात्र मन ही इसकी भूख रखता है।
    39. सबसे ज्यादा अनर्थ होते हैं, तो मान-प्रतिष्ठा के कारण होते हैं। इसी के कारण आज बड़े बड़े राष्ट्रों के बीच में संघर्ष छिड़ा हुआ है।
    40. दीन दरिद्र को देखने से अपना मान कम हो सकता है और स्वभाव की ओर देख लें तो मान समाप्त ही हो सकता है हो जाता है।
    41. मान प्रतिष्ठा के कारण हमने बहुत सारे गुणों का अनादर किया।
    42. मानी व्यक्ति के सामने सब कुछ डूब जाता है।
    43. जब मान खड़ा हो जाता है, तब यह महान् अनर्थ का कार्य भी कर सकता है।
    44. महाभारत कब हुआ और क्यों हुआ? इसकी जड़ क्या है? क्या खाने के लिए नहीं था या रहने के लिए जगह नहीं थी? केवल मान ही इसका कारण था।
    45. मानी व्यक्ति अपनी पत्नि, अपनी प्रजा, अपने भ्राता को छोड़ सकता है लेकिन अपने मान को नहीं छोड़ सकता। जैसे रावण ने नहीं छोड़ा।
    46. नरक जाना मंजूर है, लेकिन मान को कभी भी, किसी के सामने बेचेंगा नहीं। यही क्षत्रियता के लिए कलंक है।
    47. मान के कारण मोक्षमार्ग में दूषण लगते हैं।
    48. यदि आप मान की प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहते हो, तो मान कषाय की प्रतिष्ठा मत बढ़ाओ। प्रमाण की प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहिए।
    49. मान एक ऐसी गर्मी है, जिसके द्वारा ठंड के दिनों में भी पसीना आ जाता है।
    50. जब तक यह गर्मी रहेगी, तब तक तो अंदर हीटर जल रहा है। जब तक मान के शिखर से उतरेगा नहीं, तब तक उन पर ठण्ड की कोई अनुगति नहीं, न चादर की, न कमरे की, न चटाई की, किसी की भी आवश्यकता नहीं।
    51. मान के कारण ठंड में भी बाहर बैठ जाता है क्योंकि हमें बुलाया नहीं गया।

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