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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • क्षमा

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    क्षमा  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. अनंत कषाय जहाँ चली गई वहाँ अनंत क्षमा आ जाती है।
    2. क्षमा मांगने से दूसरों को नहीं, स्वयं को लाभ होता है।
    3. कषायवान व्यक्ति क्षमाभाव नहीं रखता है लेकिन क्षमावान व्यक्ति अपने जीवन में कषायों की आहुति कर देता है।
    4. जो क्षमाभाव धारण करता है वह अपने तन-मन को बड़ा कर लेता है।
    5. जो व्यक्ति निर्मल भाव से क्षमाभाव धारण करता है तो उसके जीवन के सारे दाग धुल सकते हैं।
    6. हम जीवन में कई गलतियां कर लेते हैं लेकिन गलती महसूस हो जाने पर हमें क्षमा मांगने में पीछे नहीं हटना चाहिए
    7. वर्तमान में कोई क्षमा नहीं करना चाहता है और न ही वह निर्विकल्प होना चाहता है। हमें तो क्षमा माँगकर निर्विकल्प हो जाना चाहिए।
    8. अपने आपको क्षमा मांगकर हल्का बना लेना चाहिए। क्षमा का भाव मोक्षमार्ग में एक तरफ ही होता है, वह क्षमा करे या न करे हमें तो क्षमा मांग लेना चाहिए।
    9. धरती को भी क्षमा कहा गया है क्योंकि वह अपनी छाती में निर्मल जल भी रखती है और गंदाजल भी रखती है लेकिन परिणामों में गंदापन नहीं लाती है। हम भी ऐसा कार्य करें।
    10. क्षमा से बढ़कर अन्य कोई धर्म नहीं है।
    11. जहाँ क्षमा है वहाँ मुक्तिरमा नृत्य करती हुई आती है और डाल देती है वरमाला गले में क्षमाधारी के।
    12. क्षमा माँगो नहीं, माँगना तो हमेशा खतरनाक है। क्षमा माँगने से बेड़ा पार होने वाला नहीं है। क्षमा करने से ही परमार्थ की सिद्धि हो सकती है।
    13. कहीं जाना नहीं क्षमा करने के लिए किसी जीव को। एक ही स्थान पर बैठ-बैठे क्षमा धारण करना है।
    14. माँगो मत क्षमा, क्षमा धारण करो, बहुत अंतर आ जायेगा जीवन में।
    15. पूर्ण क्षमा धारण करने के लिए घर छोड़ना पड़ेगा। घर में रहकर पूर्ण क्षमा का पालन बन नहीं सकता। आप तो पत्रों द्वारा क्षमा मांगते हैं।
    16. क्षमा भाव धारण करो, संसार के प्रासाद की नींव ढह जावेगी और मुक्ति मिल जायेगी।
    17. क्षमा नहीं है तो जीवन नहीं है याद रखो।
    18. प्रतिकूल वातावरण में भी अनुकूल वातावरण का अनुभव करना, क्षमा के बिना सम्भव नहीं है।
    19. क्षमा वह अलौकिक निधि है जो कभी समाप्त होती नहीं, जैसे भरत की निधि कभी समाप्त होती नहीं थी।
    20. क्षमा तो कुंए का जल है जो कभी सूख नहीं सकता क्योंकि वहाँ तो अक्षय स्तोत्र है जल का।
    21. श्रमण तो एक कुंआ है जिसमें क्षमा का अक्षय जल लबालब भरा रहता है।
    22. क्षमा छोड़ो नहीं कभी क्योंकि क्षमा अपनी वस्तु है।
    23. आनन्द तभी है जब राग-द्वेष का अभाव हो जाये। फिर तो आने वाला भी पिघल जाये नवनीत की भाँति। सारा क्रोध पिघल जायेगा क्षमा धारण कर लेने पर।
    24. क्षमा हमारा स्वाभाविक धर्म है। क्रोध तो विभाव है।
    25. जो व्यक्ति प्रतिदिन धीरे-धीरे अपने अंदर क्षमा धारण करने का प्रयास करता है उसी का जीवन अमृतमय है। 
    26. अमृत वहीं है जहाँ क्रोध रूपी विष नहीं है।
    27. क्रोध कषाय को मिटाने के लिए कोई औषधि है तो क्षमा है। आप इसको पास रखेंगे तो तीन काल में घटना नहीं होगी।
    28. मैं उस साधक को नमस्कार करना चाहूँगा जिसके आश्रम में क्षमा झाडू लगाती हो।
    29. झाडू तो लगाना ही चाहिए नौकरानी के रूप में उत्तम क्षमा झाडू लगाती हो। अर्थात् वह हमेशा उस आत्मा के अन्दर किसी प्रकार के धूल-कण चिपके नहीं इसलिए क्षमा हमेशा झाडू लगाती रहती है।
    30. यदि क्षमा है तो क्रोध अपना काम करें लेकिन वह जला नहीं सकता है।
    31. अनंतकाल का तपा हुआ उपयोग शांत करना है तो क्षमा के द्वारा कर सकते हैं।
    32. क्षमा धर्म जीवन में आ जाये तो दुनिया की कोई सामग्री लाद दो गुस्सा नहीं आ सकता है।
    33. आप क्षमावाणी मनाते हैं पर उनके साथ क्षमा मनाओ जिनके साथ वैर (द्वेष) है, मन की गाँठों को खोलो ।
    34. क्षमा वहीं है जहाँ वैरी भी आ जाये तो मध्यस्थ भाव रहे।
    35. अपने अस्तित्व के साथ साथ अनंत जीवों का अस्तित्व स्वीकार करना ही क्षमा है।

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