क्षमा, अनुराग विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- जिस प्रकार सर्कस में पैर नहीं टिकते डाँवाडोल स्थिति रहती है, उसी प्रकार दुख के प्रसंग आने पर भी पाँव नहीं टिकते, ऐसा दुख का प्रसंग किसी को न आवे ऐसी भावना करना, यह क्षमा की चरम सीमा है, यह अनुकम्पा है।
- विषय कषाय को दबाओ, मोहरूपी डाट को हटाओ और वास्तविक क्षमा को धारण करो।
- क्षमा करने से आत्मा सन्तुष्ट होगा, चाहने से नहीं, हमारा बिगाड़ तब है, जब हम क्षमा नहीं करें।
- वैरियों के प्रति वात्सल्य प्रादुभूत करने के लिए क्षमा करो।
- क्षमा करना गुणस्थान को बढ़ाना है और क्षमा मांगना गुणस्थान को सुरक्षित रखना है।
- लड़ाई करने के लिए तो पहले से अनेक तैयारियां करनी पड़ती हैं, लेकिन प्रेम से मिलने पर कुछ नहीं करना पड़ता।
- अनुराग से ही समाज का कल्याण हो सकता है। यदि सभी मिलकर रहेंगे प्रेमपूर्वक तो समाज आगे बढ़ेगा। जिससे सभी का भला होगा।
- अनुराग के साथ सदैव अच्छाई, प्रेम और परोपकार आता है, वहीं द्वेष समाज को नष्ट करता है। विद्वेष समाज में विघटन का कारण बनता है।
- द्वेष की मात्रा कितनी भी कम क्यों न हो, उसका परिणाम अनुराग नहीं हो सकता। द्वेष को हटाने के लिए क्रोध, मान, माया और लोभ को हटाना ही पड़ता है।
- राग छोडो प्रेम करो। तभी कल्याण होगा।
- वैर भाव जोड़ते समय पसीना नहीं आता पर छोड़ते समय आता है।
- राग-द्वेष कम करते समय लगता है, पुरानी बीमारी है जल्दी नहीं जायेगी।
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