कर्तव्य विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- भगवान भी आ जायें तो भी हम अपने कर्तव्य को भूलें ना।
- कर्तव्य का पालन करो उसके बाद कुछ भी मत सोचो। उसके बाद सोचने का अर्थ यह है कि आप दूसरे की सोच को गौण कर रहे हो।
- कर्तव्य में कोई दुख नहीं, संघर्ष नहीं किन्तु जहाँ से कर्तव्य प्रारम्भ हो जाता है वहाँ पर संघर्ष के अलावा कुछ भी नहीं रहता है।
- कषाय के कारण कर्तव्य की भूमिका में ही जो जीता रहता है तो कर्तव्य उसके सामने आता ही नहीं है और यदि आता भी है तो औपचारिक रूप में आता है।
- जिसने इस संसार में मौत की अनिवार्यता समझ ली है फिर वह संसार की क्षण भंगुरता में रचता-पचता नहीं है। उसे सदा ही अपने कर्तव्य का ध्यान बना रहता है।
- जो व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ होते हैं वे स्वयं तो प्रकाशित होते ही हैं दूसरों को भी प्रकाशित कर जाते हैं।
- आज हम कर्तव्य से स्खलित होते हुए विरुद्ध दिशा में दौड़ रहे हैं।
- कर्तृत्व अभिमान का तथा कर्तव्य सम्मान का प्रतीक है। राम कर्तव्य के तथा रावण कर्तृत्व के प्रतीक थे।
- कर्तृत्व भाव न रखें, कर्तव्य करते-करते बढ़ते जायें। इसके बिना महासत्ता में प्रवेश संभव ही नहीं।
- भावों की विरलता/महत्व को देखते हुए लगता है कि हमारे हाथ में कुछ नहीं। कर्तव्यनिष्ठा का पालन करते हुए राग-द्वेष को कम कर सकते हैं।
- जो जीवन हमें मिला है, उससे दूसरों का हित करना श्रेष्ठ मानव का कर्तव्य है।
- पुरुषार्थ करें संयमित जीवन जीयें अपव्यय और अन्याय से बचें यही विवेक है।
- गुरु के चरण और आ-चरण उनका है वे तो अविरल चलते हैं उनके पीछे अनुचर चलते हैं और यही कदम उन्हें धर्मपथ पर ले जाते हैं। जो किसी राजपथ के समान हैं। शिष्य को चाहिए गुरु के पथ का आचरण करे और जो संकेत मिलें, उसे अपना कर्तव्य मानें।
- आज तक सूर्य का कर्तव्य छूटा नहीं, हम भी अपने कर्तव्य का पालन सूर्य नारायण की तरह करना सीख लें। यदि शक्ति कम हो जाये तो रात्रि में विश्राम समय पर करेंगे तो प्रात: नयी स्फूर्ति नयी ताजगी आ जायेगी।
- कर्तव्य समझ करके सब कार्य करना चाहिए। कर्तव्य करना पड़ रहा है ऐसी मानसिकता से कार्य नहीं करना चाहिए।
- कर्तव्य करें, कर्तृत्व बुद्धि न रखें, इसमें बहुत शान्ति है।
- कर्तव्य के प्रति भाव भक्ति पूर्वक समर्पित होना चाहिए।
- देश प्रेम की भावना से कर्तव्यों का पालन करें। धर्म संस्कृति की रक्षा में अपना उत्तरदायित्व सही अर्थों में निभायें। वर्तमान में राष्ट्र के प्रति औपचारिकता बरतते हैं, यह ठीक नहीं।
- हम जहाँ रहे वहाँ कर्तव्य शील एवं न्याय नीतिज्ञ बनकर कार्य करें।
- सभी यदि अपने कर्तव्य में अडिग रहें तो कोई कारण नहीं कि सभी कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न न हों।
- सम्यग्ज्ञान की शोभा कर्तव्य पालन से है।
- हमें ऐसे समीचीन कर्तव्य का पालन करना चाहिए जिससे तन और मन दोनों प्रकार की गर्मी मिट जाये।
- मनुष्य ब्यूटी (सुंदरता) से परिचित होने की लालसा में ड्यूटी (कर्तव्य) से विमुख हो रहे हैं।
- जब तक प्राण हैं तब तक कर्तव्य के प्रति जागरूकता रखना चाहिए।
- आजादी की अर्ध शताब्दी से अधिक अवधि बीत जाने पर भी क्या दशा है? सेवा, कृतज्ञता, कर्तव्य परायणता के चिह्न कम और स्वार्थ परायणता के चिह्न बढ़ रहे हैं।
- हमें किसी की प्रतीक्षा की नहीं, निरीक्षण की आवश्यकता है। आप अपनी आत्मा का अपने कार्य का निरीक्षण करें। अपने कर्तव्य का पालन करें।
- जो करने योग्य कार्य को जानता है और अपना कर्तव्य समझकर करता है वहीं कृतकृत्य होता है।
- इसी कर्तव्य के पालन से हमारे भगवान कृतकृत्य हुए हैं।
- जीवन को सफल बनाने के लिए अपना कर्तव्य करना चाहिए।
- कर्तव्य में कोई भी संघर्ष नहीं होता, जबरदस्ती नहीं हुआ करती, कोई शर्त भी नहीं हुआ करती लेकिन कर्तव्य कथचित् जब वहाँ पर आ जाता है तब संघर्ष शुरू हो जाता है।
- कर्तृत्व के साथ स्वामित्व लग जाता है और कर्तव्य के साथ फर्ज (ड्यूटी) होता है।
- कर्तृत्व जहाँ पर आ जाता है वहाँ पर अंधकार छा जाता है।
- अन्याय, अत्याचार से बचकर अपना कर्तव्य यदि कर रहा है, तो वहाँ पर भी पर्व मनाया जा रहा है उसका प्रवाह उसकी सुगंधी चारों ओर फैलती चली जायेगी।
- आप ब्यूटीफुल (सुंदर) तो होना चाह रहे हैं लेकिन ड्यूटीफुल कर्तृत्व से मुक्त होना नहीं चाहते।
- ड्यूटी का अर्थ धर्मध्यान या कर्तव्यपरायणता है।
- कर्तव्य को छोड़कर आप यदि धर्मध्यान करना चाहते हैं तो वह धर्मध्यान नहीं माना जाता है और उसके द्वारा ज्ञान की शोभा नहीं होती।
- कर्तव्य धर्मध्यान का चिह्न है।
- कर्तव्य के प्रति कभी निराश नहीं होना उसके प्रति यदि निराश होंगे तो कार्य नहीं होगा। निराश वह होता जो स्वप्न देखता है और वह पूर्ण नहीं होता है।
- स्वप्न सात्विक हो तो उसे साकार करने का सोच सकते हैं।
- अपनी साधना को बढ़ाते हुए आनंद से सब लोग अपने-अपने कर्तव्यों को हमेशा-हमेशा करते रहें कर्तव्य विमुख न हों।
- कर्तव्य करने से विध्न भी दूर हो जाते हैं।
- कर्तव्य को मैं सब कुछ मानता हूँ।
- कर्तव्य जीवन में नहीं है तो उसे मैं गंधहीन फूल की तरह जीवन मानता हूँ। अपना जीवन हमेशा-हमेशा सुगंधित रहे बस यहीं भावना है।
- गुरुजी आचार्य ज्ञानसागर महाराज कर्तृत्व को हमेशा भूलने को कहते थे कि कर्तव्य को मुख्यता देते थे।
- अपनी गलती को स्वयं हम देखते रहें और कर्तव्य करते रहें सावधानी से। कर्तव्य करने वाला कभी अपनी गलती से अनभिज्ञ नहीं रहता है।
- अपनी गल्तियों का हिसाब-किताब एक दुकानदार की तरह प्रतिदिन करते रहें।
- हमें नाम से नहीं काम से प्रयोजन हो। हम जो भी कर रहे हैं वह अपने लिए कर रहे हैं। पर के लिए नहीं।
- हम फल की कामना करते हैं। हमें कर्तव्य करना चाहिए फल की इच्छा नहीं रखना चाहिए।