गुरुमन्त्र विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- गुरु के द्वारा दिए हुए सूत्र मन्त्र हैं। ये सूत्र शास्त्र से भी ज्यादा आनंद देने वाले हैं। शार्ट रास्ते से मंजिल दिलाने वाले हैं। मुझे गुरु के वचन शास्त्र से ज्यादा याद आते हैं।
- स्वाध्याय करने से इतना कुछ नहीं होता जितना कि गुरु संकेत कहाँ से कहाँ पहुँचा देते हैं।
- शुरूआत की भूमिका में गुरु और शिष्य में इतनी निकटता नहीं होती बाद-बाद में अधिक निकटता आती जाती है। जो बोला है, संकेत दिया है, गुरु ने उसमें सम्मोहन आकर्षण बनाओ तो इससे उसका और महत्व बढ़ जाता है। इसलिए नए सूत्र की अपेक्षा पुराने सूत्र का अधिक महत्व होता है जैसे नए ग्रन्थ नए भगवान की अपेक्षा पुराने ग्रन्थ पुराने भगवान में ज्यादा महत्व होता है क्योंकि इनके आगे कितने संतों ने कायोत्सर्ग किये विशुद्धि बढ़ाई इसलिए पुराने में आस्था रखो।
- गुरु की कृपा से बुद्ध भी बुद्धिमान् बन जाता है।
- गुरु के वचन उसी के लिए सार्थक होते हैं जिसका लिंग निर्दोष होता है इसलिए लिंग को सुरक्षित रखो।
- आचार्यों के ऋण को चुकाना चाहते हो तो उनकी चर्या के अनुसार चलो।
- गुरु अपने अनुभव से शिष्य को भी अनुभवी (स्वानुभवी) बना देते हैं।
- गुरु को यदि मानते हो तो गुरु वचन को भी मानो।
- सूत्र के लिए तो खूब कहते हो कि हमें सूत्र दो स्वाध्याय भी बहुत करते हो पर गुरुवचन को नहीं मानते।
- राह एक ही है तो दो राह क्यों बनाते हो? गुरु ने ऐसा-ऐसा कहा वही होना चाहिए।
- गुरु में यह ही विशेषता रहती है कि वे जीवनपर्यन्त के अनुभव के साथ सार-सार निकाल करके देते हैं।
- आचार्य ज्ञानसागर महाराजजी ने मंत्र दिया था-हम प्रचारक प्रसारक नहीं साधक हैं।
- गुरु भक्ति करते करते जिसका हृदय शुद्ध हो गया है आस्था मजबूत हो गई है उसे ही गुरु अध्यात्म का रहस्य उद्धाटित करते हैं।