दूसरे की ओर विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- दूसरे के प्रति अटेचमेंट नहीं हो। आउट आफ कोर्स की बात करना ही नहीं क्योंकि उनसे फिर कोर्स पूर्ण नहीं करा पाओगे।
- पहले बच्चे को मिठाई दोगे तो फिर रोटी नहीं खायेगा।
- फोर्स से नहीं कोर्स से होना चाहिए प्रश्नों के उत्तर।
- ज्यादा आकुलता के साथ आप ज्यादा कार्य करना चाहेंगे तो, आनंद जो आना चाहिए, नम्बर जो मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाते।
- दूसरों को और किसी विषय में नहीं जीतो, जीतना है तो दिल जीती।
- जो व्यवस्थित नहीं हो रहा, स्वच्छन्दता से चल रहा है उसे एक बार कह दो, दो बार कह दो, बार-बार नहीं कही।
- दूसरे को व्यवस्थित मत करो, स्वयं को व्यवस्थित करो, अपने को देखो।
- आज उदारता समाप्त हो गई, नौकरी की ओर जाने से दीनता आ गई, स्वाभिमान चला गया पराश्रित चर्या हो गई।
- अपने जीवन में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत जिसको विश्वास हो जाता है, कि हम दूसरे के यहाँ नौकरी नहीं करेंगे, हम स्वयं दूसरों को भी काम देंगे और बाहर से भीतर आयेंगे आत्मा की ओर। अंतर्जगत् की यात्रा सही शिक्षा से ही संभव है।
- गलत लाइन पर चलने की अपेक्षा सही रास्ते की ओर मुख करना बहुत अच्छा है।
- नौकर का अर्थ क्या? "कहे सो कर" उसी का नाम नौकर है। इसलिए पहले कहा जाता था नौकरी करो लेकिन अच्छे से करो। जैन लोग राजा के आधीन तो हो जाते हैं लेकिन इधर-उधर की नौकरी नहीं करते हैं।
- चर्या के समय दूसरों की ओर मत देखो, यदि देखना है तो गुणों की ओर देखो। हमें गुणों की वृद्धि के लिए दूसरे के गुणों की ओर देखना चाहिए। पर की उन्नति में अपनी उन्नति निहित है।
- पर के निमित्त से हमारा बहुत जल्दी कल्याण हो सकता है। थोड़ी सी पर्याय दृष्टि हटा लो बहुत बड़ा कल्याण मार्ग प्रशस्त हो जाता है।