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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ध्यान

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    ध्यान विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. ध्यान के केन्द्र खुल रहे हैं, ध्यान को केन्द्रित नहीं कर रहे हैं। अण्डर ग्राउण्ड में जाकर भी अण्डर में नहीं हैं। ध्यान की बात भीड़ में और ध्यान से बात एकान्त में।
    2. ज्ञान को ध्यान नहीं कहा किन्तु ज्ञान के विश्राम का नाम ध्यान है, वही कर्म निर्जरा में कारण होता है। ऐसे सूत्रों को बार-बार ध्यान में लाते रहना चाहिए तभी पूर्व के मोह के संस्कार जा पायेंगे अन्यथा सबका मन विचक जाता है। जिसका मन नहीं विचकता वही ध्याता है।
    3. आसन, समय, दिशा, स्थान इन्हें जो भूलते हैं, वे ध्यानी कहलाते हैं।
    4. पंचपरमेष्ठी की आराधना से ध्यान, स्वाध्याय व तप भी हो जाता है इसलिए इसका महत्व है।
    5. कल्याण दूसरों के आश्रित नहीं होता। कल्याण करने वालों को कल्याणक हो रहे या नहीं इसका ध्यान नहीं रहता । कल्याण करने वाला तो अपना कल्याण करके चला जाता है |
    6. तत्व चिंतन में नहीं ध्यान में एकाग्रता रहती है।
    7. पंचेन्द्रिय विषयों की उपेक्षा नहीं हुई तो ध्यान नहीं लग सकता। ध्यान विषयों में ही रहता है।
    8. पर (दूसरे के) संपर्क रूपी ईंधन से बचो, ध्यान अपने आप लग जायेगा।
    9. ध्यान का केन्द्र खोलना ठीक नहीं, ध्यान को केन्द्रित करना ठीक है।
    10. भेदविज्ञान की वेदी पर ही ध्यान की मूर्ति विराजमान होती है।
    11. पंच परमेष्ठी के ध्यान से विकल्प नहीं होते हैं, किन्तु संसार के सारे विकल्प छूट जाते हैं।
    12. चारित्र का उपसंहार ध्यान में होता है।
    13. आप लोगों के द्वारा दिया हुआ आहार प्राण के रूप में परिणत हो जाता है, जो कि ध्यान के लिए पेट्रोल का काम करता है। ध्यान रूपी गाड़ी को आगे बढ़ाता है। साथ ही आप लोगों की कर्म निर्जरा एवं पुण्य कार्य के आस्रव में कारण बनता है।
    14. ध्यान वही है जिसका उद्देश्य अच्छा है, ध्येय अच्छा है।
    15. ध्यान लगाना उपचार है। ध्यान लग जाना स्वस्थ्यता का प्रतीक।
    16. चिंतन का प्रयोग वायुमंडल में प्रवाहित चंदन जैसा होना चाहिए। मुझे भी लाभ मिले, अन्य भी लाभान्वित हो सके।
    17. चिंतन की सुगंध का विशाल कोष हमारे अंदर विद्यमान है, केवल प्रयोग में लाना है।
    18. चिंतन की सुगंध से संसार का संघर्ष समाप्त हो सकता है।
    19. परोपकारी लोग अपने द्रव्य से स्वयं के लाभ के साथ पर लाभ का भी चिंतन करते हैं।
    20. बारह भावना को चिंतन करने से निश्चित रूप से भव्य को सिद्धि का लाभ होगा। आनंद का लाभ होगा।
    21. वस्तु तत्व के चिंतन से जो बल मिलता है वह अति साहस से भी नहीं मिलता।
    22. जिसके ध्यान करने से पाँच प्रकार के संसार का परिभ्रमण नाश को प्राप्त होता है ऐसे आत्मतत्व का ध्यान आदर के साथ करो।
    23. सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक् चारित्र और ध्यानादि के द्वारा मोहनीय कर्म को छोडो।
    24. मन को रोकने का नाम ध्यान है।
    25. चिंतन का नाम ध्यान है ही नहीं, क्योंकि चिंतन मन के द्वारा होता है।
    26. मन में ऐसी भावना करना कि सब जीव सुख का अनुभव करें यह भी ध्यान हुआ। करोड़ों जाप का उतना फल नहीं, जितना इसका है।
    27. सब जीवों का कल्याण हो ऐसा ध्यान करने से अपने आप ही स्वार्थ मिट जाते हैं, ध्यान में एक काम बहुत अच्छा हो जाता है कि स्वार्थ समाप्त हो जाता है।
    28. जीवों का ध्यान करो। जड़ का ध्यान छोड़ दो। जीव का ध्यान करते हैं तो भगवान दिखते हैं और अगर नहीं भी दिखते सब जगह लेकिन होने योग्य भगवान् तो जहाँ जाओ वहाँ पर आपको मिलेंगे।
    29. पाप की ओर दृष्टि नहीं ले जाना ही ध्यान है।
    30. ध्यान करो तो कोई बात नहीं लेकिन दुर्ध्यान से बचो।
    31. जो हिंसादि पाँच पाप नहीं छोड़ सकता उसके आर्तध्यान, रौद्रध्यान नहीं छूटेगा।
    32. शवासन नहीं लगाओ शिवासन लगाओ। अच्छे से बैठकर ध्यान करो।

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