भाषा माध्यम विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- किसी पात्र में धार नहीं होती धार तो जलधारा में होती है। धार का माध्यम पिलाने वालों और पीने वालों के ध्यान में रहना चाहिए।
- माध्यम मध्य शब्द से आया है यदि माध्यम शिक्षा का रखते हो तो सही है, सरल हो, सार्वजनिक हो।
- रुचि, उत्साह, प्रीति यदि नहीं है तो प्रतीति में आने वाली वस्तु नहीं होती। रुचि के बिना वह पचेगा नहीं।
- रुचि, लगन, इच्छा शक्ति दृढ़ है, तो सफलता अवश्य मिलेगी।
- हर क्षेत्र में समय और समझ दोनों आवश्यक है।
- भाषा का आग्रह माध्यम के खिलाफ है।
- १२वीं कक्षा तक माध्यम सरल होनी चाहिए।
- माध्यम मध्यम है हम जब तक सुनते हैं उसमें मध्यम नहीं रहता तो सुनने की प्रक्रिया सही नहीं होती।
- वीणा के तारों को ज्यादा कसोगे तो भी नहीं और ढीला छोड़ोगे तो वह आवाज नहीं देगा जब हम मध्यम न ज्यादा न कम रखेंगे तभी हम उसका आनंद ले सकते हैं।
- शोध में यदि हम कहते हैं कि हम जो माध्यम देंगे उसी में लिखना होगा ये असमझदारी है, आग्रह है।
- आज आगाह पर माध्यम उतर गया।
- पृष्ठों की बात पीठ पर लादे फिरो।
- पुस्तिका में मात्र संकेत है। आनंद का अनुभव पुस्तिका को नहीं।
- समझदार समझ को अच्छे ढंग से प्रस्तुत करता है।
- समझने वाला बालक और समझाने वाला वृद्ध था लेकिन माध्यम से अनूठा काम हो गया।
- रुचि सम्यक दर्शन का सूचक है। अरुचि पूर्वक किसी को बाध्य नहीं। रुचि के साथ बैठता है तो मेल होता है।
- माध्यम का संकेत यदि रुचि के साथ जुड़ते चले जाते हैं तो अपने आप सब कुछ समझ में आ जाता है।
- माध्यम विवेकशील होना चाहिए। माध्यम बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द है।