अहिंसा विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- कर्णन्द्रिय भी एक प्राण है आप लोगों के जोर से या ज्यादा बोलने से मान लो किसी के कर्ण को आघात पहुँच गया तो आघात से कर्णन्द्रिय प्राण की हिंसा का दोष लगेगा कि नहीं? आप तो अहिंसा व्रत के धारी हैं फिर उसकी सुरक्षा कैसे होगी? अत: कम से कम और धीरे धीरे बोलने का प्रयास करना चाहिए। आपरेशन थियेटर में इशारों से बिना बोले काम किया जाता है।
- अहिंसा तभी पलती है जब हम सावधान रहें। विवेक के बिना दया नहीं पलती।
- अहिंसा पुस्तक में देखने से नहीं मिलती, क्रिया में होती है।
- प्रत्येक बात में अहिंसा को लगाने का प्रयास किया जाना चाहिए। कषाय से नहीं, नहीं तो उल्टी भाव हिंसा हो गई।
- अंतरंग में राग-द्वेष नहीं होना ही अहिंसा है और राग-द्वेष, विषय-कषाय करना ही हिंसा है।
- पाप से डरे बिना अहिंसा का पालन नहीं हो सकता।
- जितनी आप चेतन की सेवा करके अहिंसा को सामने ला सकते हैं उतना आप धन की सेवा करके अहिंसक नहीं हो सकते हैं। इसलिए गोदाम नहीं गोधाम की बात करो। जितना पशु सन्तुष्ट रहेगा उतना सुभिक्ष होगा।
- सत्य का अर्थ है अहिंसा और असत्य का अर्थ है हिंसा।
- अहिंसा के अभाव में आत्मोपलब्धि असंभव है। बाहर आना ही हिंसा है और अंदर रहना अहिंसा है। आत्म विकल हो जाना, आत्मा में आकुलता हो जाना ही हिंसा है।
- जो व्यक्ति संतोषी है, उसे शासन भी तंग नहीं कर सकता है। नर से नारायण बनो, नारकीय मत बनो। महात्मागाँधी ने भी जैनधर्म से अहिंसा सीखी है।
- जन-जन में अहिंसा का बीजारोपण करेंगे तो भारत ही क्या सारा विश्व भी शांति की श्वास लेगा, अत: अहिंसा का महत्व समझो।
- अहिंसा खेती है, व्रत बाड़ी है जिससे उस खेती का रक्षा होती है। जब तक बीज नहीं बोया जाता तब तक बाड़ी नहीं लगाई जाती।
- अहिंसा का पालन मनुष्य ही समीचीन रूप से कर सकते हैं। देव भी उस अहिंसा धर्म को नमस्कार करते हैं।
- हिंसा का अभाव ही अहिंसा का अवतार है।
- संस्कृति को सुरक्षित रखना, अहिंसा को सुरक्षित रखना है।
- अहिंसा और अभय के भावों को प्रत्येक प्राणी समझ जाता है।
- यदि सबसे ज्यादा हिंसा कर सकता है तो अहिंसा का पालन भी अच्छे ढंग से कर सकता है।
- अहिंसा धर्म के माध्यम से ही देश का संरक्षण हो सकता है। गोला बारूद से नहीं यदि अहिंसा धर्म रहेगा तो हम स्वयं उत्रत होंगे और देश भी उत्रत होगा।
- भाव अहिंसा आत्मा के उत्थान के लिए सोपान एवं मंजिल है।
- और द्रव्य अहिंसा अड़ोसी पड़ोसी में सुख शांति का विस्तार करने वाली है।
- अहिंसा के माध्यम से ही स्व-पर कल्याण संभव है।
- अहिंसा धर्म अपनाते ही राग कम होता जाता है तथा जीवन में खुशबू आने लगती है।
- यदि हम अपना सर्वागीय चहुँमुखी विकास चाहते हैं तो हमको अहिंसा धर्म की वेदी पर अपना माथा टेक जीवन में उसको ट्रांसलेट (परिवर्तित) करना होगा।
- यदि हमारी राष्ट्रीय मुद्रा अहिंसा की प्रतीक है तो हमको भी अहिंसा का अनुपालन करना चाहिए। अन्यथा राष्ट्रीय मुद्रा का अपमान है।
- अहिंसा केवल श्रद्धा की बात नहीं यह व्यक्ति के आचरण के साथ होती है वह उसे महान् बना देती है।
- यदि अहिंसा के लिए हमारा जीवन मिट भी जाता है तो हमें अमर बनने में देर नहीं लगेगी।
- मुख सबके पास है जिह्वा सबके पास है, वाणी सबके पास है लेकिन सबकी वाणी में वजनदारी नहीं होती, हर लेखनी में जान नहीं होती। इस वजनदारी का स्रोत क्या है? यह सत्य, अहिंसा, दया से ओतप्रोत भावना ही परिणाम है, जो वाणी में वजनदारी आ जाती है।
- सत्य और अहिंसा का बहुत गहराई से सम्बन्ध है यदि एक हाथ में हमारे सत्य है तो दूसरे में अहिंसा होनी चाहिए।
- सत्य और अहिंसा दोनों मिल जाते हैं तो बड़े से बड़े राष्ट्रों की भी रक्षा की जा सकती है, उनका विकास किया जा सकता है।
- हिंसा की मात्रा जितनी कम होगी, चारों ओर उतनी हरियाली छाती चली जायेगी।
- हिंसा की मात्रा जितनी बढ़ती चली जाती है, तो बाहर भी उसकी लपटें आना प्रारम्भ हो जाती हैं।
- भारत की संस्कृति अहिंसा है। इस अहिंसा में सारी संस्कृतियाँ अपने आप समाहित हो जाती हैं।
- अहिंसा धर्म में जिसका चित्त लीन रहता है इस धरती पर वह मानव देवों से भी पूज्य है।
- हिंसा से दूर रहकर अहिंसा का पालन करते हुए तो व्यक्ति धर्म का श्रवण-चिंतन-मनन करता है, उन्हें प्राप्त करने का भाव रखता है, वह अवश्य ही अपने जीवन में आत्म-स्वभाव का अनुभव करने की योग्यता पा लेता है और जीवन को धर्ममय बना लेता है।
- अहिंसारूपी तेल के अभाव में दीपक से प्रकाश मिलना असंभव है, केवल दम घुटने वाला धूँआ ही मिलेगा। शरीर को जो बिगाड़ता है वह भी हिंसक है।
- शरीर का शोषण भी नहीं तो पोषण भी नहीं। उसे अपने अधिकार में रखो ताकि आत्मिक विकास के काम आ सके।
- अज्ञानरूपी अंधकार को निकालने के लिए जो प्रयास किया जाता है उसका नाम अहिंसा है।वस्तु तक पहुँचाने वाली व्यवस्थिती है।
- दया अहिंसा के माध्यम से अनंत परिस्थिति से बच सकते हैं।
- जैसे भगवान की विमान यात्रा निकालते हैं तो पालकी (विमान) भारी होने के कारण एक दूसरे के कंधों पर देते रहते हैं, वैसे ही आप लोग भी अहिंसा धर्म की रक्षा के लिए एक दूसरे का उपकार करते चलो।