आस्था, अनुभव विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- अविनश्वर सुख के लिए आस्था की आवश्यकता है। आस्था हमेशा परिस्थिति लेकर चलती है।
- आस्था का वास्ता मिलेगा और वह रास्ता मिलेगा मार्ग में नहीं मंजिल में मिलेगा।
- अहित में हित का श्रद्धान जो हम कर चुके हैं उसे पहले छोड़ें।
- आस्था को मजबूत करो। संवेग निर्वेग भाव को रखते हुए अनुभव वृद्धों की ओर भी देखा करो।
- अनुभव तक पहुँचने के लिए आस्था रखकर निरंतर अध्ययन की आवश्यकता होती है।
- राग का अनुभव हो और वीतरागता विज्ञान की बात करो तो वह हल्की फुल्की सी लगती है।
- अनुभव की बात नहीं होती अनुभव तो किया जाता है मंथन के द्वारा वह दूसरे के काम नहीं आता ।
- अनुभव हीन जीवन होने से आस्था जिस विषय में होनी चाहिए थी वह नहीं हो पाती।
- जहाँ अनुभव, विश्वास की कमी होती है वहाँ शिक्षा कोई काम की नहीं होती।
- भारत में टाइम नहीं समय चलता है। समय एक प्रकार से द्रव्य का स्वभाव है।
- समय का जो मूल्यांकन करता है वह मौलिक अनुभवी माना जाता है।
- मोक्षमार्ग में आस्था हो लेकिन विषयी सुख में नहीं क्षणिक सुख के गर्भ में दु:ख का ही अनुभव होता है।
- यदि हमारे पास श्रद्धा नहीं है तो हमारा वैराग्य किसी काम का नहीं है। श्रद्धान के साथ वैराग्य होता है।
- अस्थिरता व अनास्था होती है तो फल नहीं मिलता आस्था स्थिर हो जाती है तो उसका फल सामने आ जाता है।